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AGARA बांकेबिहारी मंदिर में लग रहे जयकारे,प्राकट्यकर्ता स्वामी हरिदास का जन्मोत्सव मन रहा धूमधाम से

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उत्तर प्रदेश न्यूज़ डेस्क !!! सूत्रों के अनुसार बताया जा रहा है कि, स्वामी जी के जन्मोत्सव पर उनकी साधनास्थली श्री निधिवनराज एवं हरिदासीय परम्परा से जुड़े तटीयस्थान, रसिकबिहारी मन्दिर, गोरेलाल कुंज आदि स्थानों पर विविध धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किये गये हैं।निधिवन राज में मंगलवार की सुबह चार बजे स्वामी हरिदास जी का सवा मन दूध, दही से पंचामृत अभिषेक किया गया। सेवयात रोहित गोस्वामी, भीख चन्द गोस्वामी के नेतृत्व में गोस्वामी परिवार के लोगों ने दूध, दही, घी, बुरा, शहद से पंचामृत अभिषेक किया गया। इस दौरान मंदिर में मौजूद भक्त कुंजबिहारी श्री हरिदास के जयकारे लगाने लगे।  ब्रज ही क्‍या समूचे देश और दुनिया में आराध्‍य बांकेबिहारी के प्रकाट्यकर्ता स्‍वामी हरिदास का आज जन्‍मोत्‍सव है।

खबरों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बताया जा रहा है कि     वृंदावन के ठा. बांकेबिहारी मंदिर में राधे-राधे के जयकारे लग रहे हैं। जन्‍मोत्‍सव को धूमधाम से मनाया जा रहा है। मंगलवार को प्रातः मंगल बेला में वैदिक मंत्रोचारण के मध्य स्वामी हरिदास जी का पंचामृत अभिषेक किया गया। इस अवसर पर भक्त दर्शन को उमड़ पड़े।जन जन के आराध्य ठाकुर बांकेबिहारी जी महाराज को अपनी अद्भुत भक्तिमयी संगीत साधना से प्रकट करने वाले स्वामी हरिदास के आविर्भाव दिवस पर तीर्थनगरी में धार्मिक अनुष्ठानों की धूम मची है। स्वामी जी की साधना स्थली पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।

मीडिया रिपेार्ट के अनुसार  बता दें कि,भारतीय शास्त्रीय संगीत के सरताज कहे जाने वाले स्वामी हरिदास का जन्म विक्रम संवत 1535 में भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को ब्रह्महूर्त में जनपद अलीगढ़ के समीप कोल तहसील में विप्रदेव आशुधीर व गंगा देवी के घर मे हुआ था। हालांकि उनके जन्मस्थान को लेकर भक्तों में कुछ भेद विभेद है। कुछ भक्त जन्मस्थान वृंदावन के समीप ग्राम राजपुर में मानते है।बाल्यकाल से कृष्णभक्ति की ओर उन्मुख हरिदास वृंदावन आ गये और यमुना तट पर अवस्थित लता पताओं से आच्छादित निधिवनराज को अपनी साधना स्थली बनाया।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि,स्वामी हरिदास अपनी सुमधुर संगीत साधना से श्री प्रिय प्रियतमा जू को रिझाते थे। धार्मिक ग्रन्थों में वर्णित है कि जब स्वामी हरिदास के तानपुरे से स्वरलहरियां निकलती थीं तो स्वयं श्री राधा कृष्ण युगल स्वरूप में निधिवनराज में उपस्थित हो जाते थे। स्वामी हरिदास जी की संगीत कला से प्रभावित होकर सम्राट अकबर के नवरत्नों में शुमार तानसेन एवं बेजूबाबरा ने उनसे संगीत की दीक्षा ली थी। विक्रम संवत 1562 में मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि पर स्वामी जी ने अपनी संगीत साधना से भक्तों की आस्था के केंद्र बिंदु ठाकुर बांकेबिहारी जी को प्रकट किया था।

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