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बारां का मिनी खजुराहो, भांड देवरा मंदिर अपनी भव्यता के बावजूद जर्जर हालत में

बारां का मिनी खजुराहो: भांड देवरा मंदिर अपनी भव्यता के बावजूद जर्जर हालत में

राजस्थान के बारां जिले से लगभग 36 किलोमीटर दूर, रामगढ़ की पहाड़ियों के बीच स्थित भांड देवरा मंदिर, जिसे स्थानीय लोग मिनी खजुराहो के नाम से भी जानते हैं, आज अपनी ऐतिहासिक भव्यता के बावजूद जर्जर हालत में है।

भगवान शिव को समर्पित यह प्राचीन मंदिर राजस्थानी वास्तुकला का अनमोल नमूना माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, मंदिर का निर्माण बिना रेत, चूना या सीमेंट के केवल पत्थरों को जोड़कर किया गया था। इस अनूठी तकनीक ने इसे सदियों तक खड़ा रखा, लेकिन समय और प्राकृतिक तत्वों के प्रभाव से इसकी स्थिति चिंताजनक हो गई है।

मंदिर की वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व

भांड देवरा मंदिर अपनी अद्वितीय पत्थर कला और नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर की दीवारों पर शिवलिंग, देवी-देवताओं और अन्य धार्मिक प्रतीकों की बारीक नक्काशी देखी जा सकती है। इसकी कला और संरचना लोगों को खजुराहो की याद दिलाती है, इसी कारण इसे मिनी खजुराहो कहा जाता है।

स्थानीय इतिहासकारों का कहना है कि यह मंदिर सैकड़ों वर्षों पुराना है और कभी यह क्षेत्र धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा करता था। मंदिर के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ और प्राकृतिक वातावरण इसे एक अद्वितीय पर्यटन स्थल बनाते हैं।

जर्जर हालत और संरक्षण की आवश्यकता

हालांकि मंदिर अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, लेकिन आज यह बिलकुल संरक्षण के अभाव में जर्जर हो गया है। दीवारों और छत पर दरारें दिखाई देती हैं, कुछ हिस्सों में पत्थर गिरने की स्थिति बन गई है। स्थानीय लोग और पुरातत्व विशेषज्ञ सरकार और पर्यटन विभाग से जल्द से जल्द संरक्षण कार्य की मांग कर रहे हैं।

पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते मरम्मत और संरक्षण कार्य नहीं किया गया तो यह ऐतिहासिक धरोहर हमेशा के लिए नष्ट हो सकती है। उन्होंने अपील की है कि मंदिर को राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय संरक्षण योजना में शामिल किया जाए।

स्थानीय और पर्यटन दृष्टि

भांड देवरा मंदिर के आसपास की पहाड़ियों और प्राकृतिक सुंदरता ने इसे पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षक स्थल बना दिया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि धार्मिक उत्सवों और महाशिवरात्रि जैसे अवसरों पर यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।

हालांकि, जर्जर हालत और सुरक्षा की कमी के कारण कई पर्यटक इसे देखने से कतराते हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सुरक्षा, पर्यटन विकास और संरक्षण को साथ लेकर ही इस मंदिर का पर्यटन और सांस्कृतिक महत्व बढ़ाया जा सकता है।

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