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राजसमंद : देवगढ़ से बर के बीच नए ट्रैक को लेकर अब पांचवींं बार कराएंगे सर्वे, 42.50 लाख की वित्तीय स्वीकृति जारी

मावली-मारवाड़ की रेललाइन 85 साल पुरानी है, जिसके आमान परिवर्तन करने के लिए कई बार सर्वे हाे गया, लेकिन अब तक सभी प्रयास सिफर ही रहे हैं। जिले की बहुप्रतीक्षित मांग मावली-मारवाड़ आमान परिवर्तन में वन विभाग की जमीन आने से देवगढ़ से आगे रुट तय नहीं हो पा रहा। पूर्व में मौजूदा रेललाइन पर
राजसमंद : देवगढ़ से बर के बीच नए ट्रैक को लेकर अब पांचवींं बार कराएंगे सर्वे, 42.50 लाख की वित्तीय स्वीकृति जारी

मावली-मारवाड़ की रेललाइन 85 साल पुरानी है, जिसके आमान परिवर्तन करने के लिए कई बार सर्वे हाे गया, लेकिन अब तक सभी प्रयास सिफर ही रहे हैं। जिले की बहुप्रतीक्षित मांग मावली-मारवाड़ आमान परिवर्तन में वन विभाग की जमीन आने से देवगढ़ से आगे रुट तय नहीं हो पा रहा। पूर्व में मौजूदा रेललाइन पर ही ब्रॉडगेज को लेकर घाट सेक्शन होने से ब्रॉडगेज नहीं हो सकती। पूर्व सांसद हरिओम सिंह राठौड़ ने देवगढ़ से सिरियारी होते हुए मारवाड़ मिलाने काे लेकर सर्वे करवाया था।लेकिन इस तरफ भी वन खंड आने से यह रुट भी ठंडे बस्ते में चला गया। ऐसे में अब तीसरे विकल्प के तौर पर सांसद दीयाकुमारी ने देवगढ़ से बर रेलवे लाइन को वैकल्पिक मार्ग के तौर पर देखा जा रहा है। देवगढ़ से बर 85 किमी सर्वे के लिए 42.50 लाख रुपए की वित्तीय स्वीकृति भी जारी हाे गई है। देवगढ़ से बर के लिए रुट क्या होगा, कौन से नए स्टेशन बन सकते हैं, यह सबकुछ सर्वे के बाद ही पता चल पाएगा।
मावली-मारवाड़ रेलवे लाइन के दोहरीकरण में वन विभाग के कारण आ रही समस्याओं के समाधान की दिशा में रेलवे द्वारा देवगढ़ से बर रेलवे लाइन को जाेड़ने के लिए नया पीईटी सर्वे कराने की स्वीकृति प्रदान की। रेलवे लाइन के मध्य तीन अभयारण्य आने से आमान परिवर्तन में काफी परेशानी आ रही थी।
85 किमी की इस नवीन रेलवे लाइन के सर्वे के लिए 42.50 लाख रु. की वित्तीय स्वीकृति भी जारी कर दी है। सांसद दीयाकुमारी ने कहा कि मावली-मारवाड़ ब्रॉडगेज क्षेत्रवासियों की बहुप्रतीक्षित मांग है। क्षेत्र के नागरिकों को इस रेलवे लाइन से परिवहन में सुगमता होगी।
ज्यादा खर्चीला और घुमावदार होने से मंजूरी नहीं मिलीमावली-मारवाड़ रेल लाइन 85 साल पुरानी रेल लाइन को आमान परिवर्तन करने के लिए अब तक 4 बार सर्वे किया जा चुका हैं, लेकिन हर बार नतीजा सिफर रहा। रेलवे विभाग के अधिकारी गोरमघाट का घाट सेक्शन होने से ज्यादा खर्चीला और घुमावदार रेलखंड होने से बड़ी लाइन बिछाने से मना कर दिया। इसके बाद 2014 में सांसद हरिओम सिंह राठौड़ के सांसद बनने के बाद 1597 करोड़ का प्रोजेक्ट मंजूर करवाया।
सर्वे के लिए एक करोड़ पास करवाए। दूसरा रुट निकालने का विकल्प दिया। रुट पर घाट सेक्शन को हटाते हुए नया रुट का सर्वे घोषित करवाया। जो देवगढ़ से सिरियारी होते हुए मारवाड़ मिलाया जाएं। रुट के तहत देवगढ़ से कामलीघाट, मंडावर, भुजरोल, बोरीमाधो, सिरियारी, फुलाद, राणावास होते हुए मारवाड़ मिलाना था।मावली-मारवाड़ रेल लाइन ब्रिटिश शासन काल में बिछी थी। आजादी से पहले 1936 में उदयपुर से जोधपुर तक बिछी। पहले मेवाड़ के उदयपुर का जोधपुर से सीधा जुड़ाव था। लेकिन बाद में उदयपुर से मावली ब्रॉडगेज व जोधपुर से मारवाड़ ब्रॉडगेज होने के बाद 152 किलोमीटर का यह रेल खंड मावली से मारवाड़ तक ही सीमित हो गया। 152 किमी रुट पर 80 प्रतिशत रास्ता पहाड़ों के बीच होकर गुजरता है। पूर्व में पर्यटन, सैन्य, व्यापारिक दृष्टि से बहुत सस्ता, सुगम मार्ग था
मावली-मारवाड़ रेललाइन प्रत्येक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उदयपुर, चित्ताैड़गढ़, मध्यप्रदेश के पर्यटक स्थलों का मारवाड़ से ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्यटन क्षेत्र में महत्व रखने वाले शहरों से हो सकेगा। इन शहरों की सेंचुरियां भी जुड़ जाएगी। जोधपुर में नवलखा पार्श्वनाथ से कनेक्टिविटी हो सकती है।
मावली-मारवाड़ पर चलने वाली मीटर गेज ट्रेन गोरमाघाट में शिमला की टॉय ट्रेन का अनुभव करवाती है। कामलीघाट से घाट सेक्शन शुरू हो जाता है। गोरमघाट में प्राकृतिक वादियों के बीच से गुजरता ट्रेक शिमला का अहसास करवाता है।

 

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