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Madhya Pradesh में चुनावी वैतरणी पार करने में आधी आबादी बनेगी पतवार?

Madhya Pradesh में चुनावी वैतरणी पार करने में आधी आबादी बनेगी पतवार?

मध्य प्रदेश न्यूज डेस्क् !!! मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती नजर आ रहे हैं। यही कारण है कि जीत हासिल करने के लिए दोनों ही ओर से दांव चले जा रहे हैं। उनके निशाने पर आधी आबादी है और वे इसके जरिए चुनावी वैतरणी को पार करने की कवायद में जुट भी गए हैं। राज्य में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और दोनों चुनावी रणनीति में व्यस्त हैं। राज्य में कुल मतदाता पांच करोड़ 39 लाख 87 हजार 876 है। इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या दो करोड़ 79 लाख 62 हजार 711 और महिला मतदाताओं की संख्या दो करोड़ 60 लाख 23 हजार 733 है। मतदाताओं की संख्या के इसी गणित के चलते भाजपा और कांग्रेस महिलाओं का दिल जीतने की कोशिश में लगी हुई है।

राज्य में दोनों राजनीतिक दलों ने महिलाओं को लुभाने के लिए कदमताल तेज कर दी है। एक तरफ जहां सरकार ने महिलाओं को नगरीय और ग्रामीण सरकारों में हिस्सेदारी बढ़ाई है तो वहीं सरकारी सेवा में भी आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इतना ही नहीं आर्थिक रूप से सबल बनाने के लिए आजीविका मिशन के तहत महिलाओं के स्व सहायता समूह को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश जारी है। अब शिवराज सिंह चौहान ने गरीब और मध्यम वर्ग की महिलाओं के लिए लाडली बहना योजना का ऐलान किया है, इस योजना के तहत महिलाओं के खाते में हर माह एक हजार रुपये जमा किए जाएंगे।

एक तरफ जहां भाजपा और प्रदेश सरकार महिलाओं को लुभाने में लगी है तो दूसरी ओर कांग्रेस ने इस बार के चुनाव में महिलाओं के लिए एक अलग से वचन पत्र बनाने का ऐलान किया है। यह वचन पत्र पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाम पर होगा और इसे प्रियदर्शनी नाम दिया जाएगा। इस वचन पत्र में महिलाओं के लिए खास प्रावधान होंगे। महिला सुरक्षा, महिलाओं को सामाजिक-आर्थिक रूप से मजबूत करने जैसे मुद्दों को शामिल किया जाएगा।

राजनीतिक दलों की महिलाओं को लुभाने के लिए चल रही कवायद के बीच राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों ही दल महिलाओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। मगर सवाल यह उठ रहा है क्या महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिलेगा, क्योंकि मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं और उनमें सिर्फ 21 महिलाएं विधायक हैं। प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो आबादी भले आधी हो मगर विधानसभा में प्रतिनिधित्व उनका 10 प्रतिशत के आसपास है। यही कारण है कि महिलाओं के हित की लड़ाई सदन में कभी नहीं लड़ी जा सकी है, क्योंकि उनसे जुड़ी समस्याओं को उठाने वाले प्रतिनिधि ही कम होते हैं। सवाल है क्या दोनों ही राजनीतिक दल आबादी के आधार पर महिलाओं को चुनाव मैदान में भी उतारेंगे।

--आईएएनएस

एसएनपी/एसकेपी

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