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BJP की रणनीति गुजरात, हिमाचल, मप्र और कर्नाटक की सत्ता बचाते हुए राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जीतना

भाजपा की रणनीति गुजरात, हिमाचल, मप्र और कर्नाटक की सत्ता बचाते हुए राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जीतना
भाजपा इस वर्ष के अंत में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के साथ-साथ अगले वर्ष होने वाले मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जोर-शोर से जुट गई है। भाजपा जहां एक ओर अपने सबसे मजबूत गढ़ गुजरात में दोबारा से पार्टी को 115 के ऊपर पहुंचाने की रणनीति पर काम कर रही है तो वहीं दूसरी ओर स्थापित ट्रेंड को तोड़कर हिमाचल प्रदेश में लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लक्ष्य को लेकर भी चल रही है। भाजपा के लिए 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव भी काफी अहम है।

एक तरफ जहां वो मध्य प्रदेश और कर्नाटक में अपनी सरकारों की वापसी की रणनीति बना रही है तो वहीं साथ-साथ कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को साकार करने के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार को भी चुनाव हरा कर सत्ता से बाहर करने की योजना पर काम करना शुरू कर चुकी है। भाजपा 2023 में तेलंगाना की केसीआर सरकार को भी चुनावी झटका देने का दावा कर रही है। सबसे पहले बात करते हैं उस गुजरात की, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य है और जो पिछले कई दशकों से भाजपा का गढ़ बना हुआ है। गुजरात में भाजपा 1995 से लगातार सत्ता में है।

2001 में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से भाजपा राज्य में अजेय हो गई, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली आ जाने के बाद से गुजरात में भाजपा संभल नहीं पा रही है। साल 1995, 1998, 2002, 2007 और 2012 के लगातार 5 विधानसभा चुनावों में भाजपा राज्य की कुल 182 विधानसभा सीटों में से 115 से लेकर 127 के बीच सीटें जीतकर सरकार बनाती रही है, लेकिन 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 100 से भी नीचे पहुंच गई।

2017 में भाजपा को महज 99 सीटों पर ही जीत हासिल हो पाई। इस चुनाव में कांग्रेस को 77 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। अपने सबसे मजबूत गढ़ में मिले इस झटके के बाद सही अवसर आते ही भाजपा ने राज्य में मुख्यमंत्री के साथ-साथ पूरी सरकार को ही बदल डाला और अब भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती 2022 के आखिर में राज्य में होने वाले चुनाव में फिर से 115 से ज्यादा सीटें जीतकर शानदार बहुमत के साथ लगातार 7 वीं बार सरकार बनाने की है। पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में 1990 के बाद से किसी सरकार को लगातार दूसरी बार जनादेश नहीं मिला है। भाजपा के लिए राज्य में इस ट्रेंड को तोड़कर 2022 में लगातार दूसरी बार सरकार बनाना बड़ी चुनौती है।

2017 विधानसभा चुनाव की बात करें तो राज्य की कुल 68 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा को 48.79 प्रतिशत मतों के साथ 44 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं 41.68 प्रतिशत मतों के साथ कांग्रेस के खाते में 21 सीटें आई थीं। हिमाचल प्रदेश, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह राज्य है, इसलिए वो स्वयं लगातार हिमाचल प्रदेश का दौरा कर राज्य के चुनावी माहौल को भाजपा के पक्ष में बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

गुजरात और हिमाचल प्रदेश, दोनों ही राज्यों में अब तक मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता आया है, लेकिन पंजाब में मिली जीत से उत्साहित जीत आम आदमी पार्टी पूरे दम-खम के साथ इन दोनों राज्यों में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। केजरीवाल की पार्टी किसे ज्यादा चुनावी नुकसान पहुंचाएगी यह तो चुनावी नतीजें ही बताएंगे लेकिन फिलहाल भाजपा इन दोनों राज्यों में आप को बड़ी चुनौती नहीं मान रही है।

2023 में होने वाले विधान सभा चुनावों की बात करें तो मध्य प्रदेश और कर्नाटक, दोनों ही राज्यों में भाजपा 2018 का इतिहास दोहराने नहीं देना चाहती है। मध्य प्रदेश में, 2003 से लगातार चुनाव जीत रही भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने करारा झटका देते हुए सरकार से बाहर कर दिया था। 2018 के चुनाव में राज्य की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 114 पर जीत हासिल कर, कांग्रेस ने अन्य दलों के सहयोग से सरकार बनाकर भाजपा को राजनीतिक झटका दे दिया था।

हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद भाजपा ने कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर करते हुए मार्च 2020 में फिर से अपनी सरकार बना ली, लेकिन भाजपा अब 2023 में 2018 की गलती कतई दोहराना नहीं चाहती। भाजपा अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाना चाहती है।

दिल्ली न्यूज डेस्क् !!! कर्नाटक में भी इस समय भाजपा की सरकार है, लेकिन 2018 में राज्य में भाजपा की सरकार नहीं बन पाई थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 223 विधानसभा सीटों में से भाजपा को 104 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, लेकिन बहुमत से थोड़ा पीछे रह जाने की वजह से येदियुरप्पा विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाए।

उस समय राज्य में 78 सीट जीतने वाली कांग्रेस ने 37 सीट जीतने वाले जेडीएस को समर्थन दे दिया और एचडी कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री बने। लेकिन 14 महीने बाद ही कुमारस्वामी सरकार गिर गई और भाजपा के येदियुरप्पा फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। राज्य की तेजी से बदलती राजनीतिक परिस्थितियों की वजह से भाजपा ने मुख्यमंत्री बदलने का फैसला किया और जुलाई 2021 में येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया।

कांग्रेस मुक्त नारे को साकार करने के लिए भाजपा 2023 में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को हरा कर सत्ता से बाहर करने की रणनीति पर भी काम कर रही है। राजस्थान की बात करें तो इस राज्य में 2018 के विधानसभा चुनाव में कुल 200 सीटों में से कांग्रेस को 100 और भाजपा को 73 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। अशोक गहलोत ने बसपा और अन्य दलों के सहयोग से राज्य में सरकार का गठन किया और सचिन पायलट की बगावत की कोशिशों के बावजूद अपनी सरकार बचाने में अब तक सफल ही साबित हुए हैं।

छत्तीसगढ़ की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 68 और भाजपा को 15 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। प्रदेश में बंपर जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस ने भूपेश बघेल को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया था। अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के करीबी माने जाते हैं तो वहीं भूपेश बघेल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के करीबी माने जाते हैं।

मिशन दक्षिण भारत के सपने को साकार करने में जुटी भाजपा के लिए 2023 में तेलंगाना का चुनाव भी एक बड़ा चुनाव होने जा रहा है। तेलंगाना की बात करें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 119 विधानसभा सीटों में से रिकॉर्ड 88 सीटों पर जीत हासिल कर टीआरएस ने सरकार बनाई और के. चंद्रशेखर राव राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में कांग्रेस को 19, एआईएमआईएम को 7, टीडीपी को 2 और भाजपा को केवल 1 सीट पर ही जीत हासिल हुई थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में राज्य की 17 में से 4 लोक सभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा लगातार इस राज्य में अपने आपको मजबूत करने के लिए कार्य कर रही है।

पार्टी स्थानीय निकायों में मिल रही जीत से लगातार उउत्साहित है और हाल ही में पार्टी ने अपने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी तेलंगाना में ही करके यह स्पष्ट राजनीतिक संकेत दे दिया था था कि वो इस प्रदेश को कितनी गंभीरता से ले रही है। भाजपा ने इसी सप्ताह उत्तर प्रदेश में पार्टी को कई बार जीत दिलाने वाले कुशल रणनीतिकार सुनील बंसल को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर प्रदेश प्रभारी के तौर पर पश्चिम बंगाल और ओड़िशा के साथ-साथ तेलंगाना की भी जिम्मेदारी देकर अपने इरादे को साफ कर दिया है।

--आईएएनएस

एसटीपी/एसजीके

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