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मुस्लिम बुद्धिजीवियों और इमाम इलियासी के साथ मुलाकात के बाद Bhagwat का मदरसा दौरा- आखिर क्या है आरएसएस का एजेंडा ?

मुस्लिम बुद्धिजीवियों और इमाम इलियासी के साथ मुलाकात के बाद Bhagwat का मदरसा दौरा- आखिर क्या है आरएसएस का एजेंडा ?
दिल्ली न्यूज डेस्क !!! मुस्लिम बुद्धिजीवियों और इमाम के साथ संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात और उनके मदरसे दौरे को लेकर कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं। देश में एक तरफ जहां कांग्रेस एवं राहुल गांधी, भाजपा सरकार एवं आरएसएस पर लगातार सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने का आरोप लगा रही है, वहीं दूसरी तरफ देश में सांप्रदायिक साहौर्द मजबूत करने की वकालत करते हुए संघ प्रमुख भागवत स्वयं मोर्चा संभालते नजर आ रहे हैं। पिछले महीने की 22 तारीख यानी 22 अगस्त को भागवत ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के एक समूह से मुलाकात की। इस मुलाकात के ठीक एक महीने बाद आज यानी 22 सिंतबर को पहले नई दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित मस्जिद जाकर अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख डॉ इमाम उमैर अहमद इलियासी के साथ मुलाकात की और फिर पुरानी दिल्ली स्थित मदरसा ताज्वीदुल कुरान पहुंचकर वहां पढ़ने वाले बच्चों और पढ़ाने वाले अध्यापकों के साथ बातचीत की।

ऐसा लग रहा है कि देश के लगातार बदल रहे माहौल के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुस्लिम समुदाय के साथ बातचीत, संपर्क और संवाद की जिम्मेदारी स्वयं संभाल ली है। यह सवाल उठाए जाने लगे हैं कि क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बदल रहा है ? क्या मुस्लिमों को लेकर संघ की सोच बदल रही है और सबसे बड़ा सवाल कि इन सबके पीछे आरएसएस का एजेंडा क्या है ? आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं मोहन भागवत ?आईएएनएस ने विरोधियों द्वारा उठाए जा रहे इन तमाम सवालों का जवाब संघ के वरिष्ठ नेता और वर्तमान में संघ में अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख का दायित्व संभाल रहे सुनील आंबेकर से जानने की कोशिश की।आईएएनएस से बातचीत करते हुए सुनील आंबेकर ने कहा कि संघ आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ रहा है और हमारा यह मानना है कि सभी को कट्टरता का विरोध करना चाहिए और मिल कर समाज में सौहार्द कायम करने के लिए प्रयास करने चाहिए। यह सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।

आंबेकर ने आगे कहा कि किसी भी प्रकार की पूजा पद्धति पर संघ को कभी भी कोई एतराज नहीं रहा है। उन्होंने संघ प्रमुख भागवत की मुलाकात पर उठ रहे सवालों का जवाब देते हुए यह साफ किया कि संघ तो हमेशा देश और समाज के हित को लेकर चर्चा करने के लिए तैयार रहा है। इसके लिए संघ के दरवाजे हमेशा खुले रहे हैं। अयोध्या मुद्दे के समय भी हमने सभी से चर्चा की थी, यहां तक कि अदालत का फैसला आने के समय भी हमने जश्न नहीं मनाने का आह्वान किया और इसे पूरी तरह से फॉलो भी किया।

आईएएनएस से बात करते हुए संघ नेता ने आगे कहा कि देश में सौहार्द कायम करने के उपायों पर चर्चा के लिए समाज के विभिन्न वर्गों के लोग हमसे मुलाकात कर रहे हैं और करना चाहते हैं और संघ इस तरह की चचार्ओं के लिए हमेशा तैयार रहा है। इसमें नया कुछ भी नहीं है।सरसंघचालक समाज जीवन के विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलते रहते हैं। यह भी इसी सतत चलनेवाली संवाद प्रक्रिया का हिस्सा है।

वहीं आरएसएस के वरिष्ठ नेता, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संस्थापक एवं मुख्य सरंक्षक इंद्रेश कुमार ने कहा कि संघ के पूर्व प्रमुख केएस सुदर्शन के कार्यकाल से ही देश के मुस्लिम और ईसाई इस बात के लिए लगातार संपर्क कर रहे हैं कि वो संघ को सियासी और मजहबी नेताओं के जरिए नहीं बल्कि स्वयं बातचीत कर समझना चाहते हैं। इसलिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का गठन किया गया था जो कि मुस्लिम समुदाय से बातचीत करने का एक सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म बना। वर्तमान संघ प्रमुख मोहन भागवत से भी मुलाकात और संवाद के लिए इस तरह के अनुरोध लगातार इन समुदायों की तरफ से किए जा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि इसी तरह के अनुरोध पर संघ प्रमुख ने 22 अगस्त को मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात की थी और अखिल भारतीय इमाम संगठन प्रमुख के निमंत्रण पर संघ प्रमुख आज, 22 सितंबर को उनसे मिलने दिल्ली स्थित उनके घर पर गए थे।

जाहिर तौर पर संघ यह कह रहा है कि संघ प्रमुख भागवत इमाम इलियासी से मिलने के लिए उनके घर गए थे जो दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर है। हालांकि सबसे बड़ी बात यह है कि आने वाले दिनों में इस तरह की कई मुलाकातें और दौरे हमें बार-बार देखने को मिल सकते हैं और सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि देश के ईसाई घर्मगुरूओं और बुद्धिजीवियों के साथ भी संघ प्रमुख भागवत मुलाकात कर सकते हैं। बताया जा रहा है कि मुस्लिम और ईसाई समुदाय के धर्मगुरूओं और बुद्धिजीवियों के साथ बातचीत, संवाद और संपर्क बनाए रखने के लिए आरएसएस ने चार वरिष्ठ नेताओं की एक टोली का भी गठन किया है जिसमें इंद्रेश कुमार के अलावा डॉ कृष्णगोपाल, मनमोहन वैद्य और रामलाल जैसे वरिष्ठ नेताओं को शामिल किया गया है।

दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के दौरान भाजपा ने अपने प्रति देश के अल्पसंख्यक समुदाय खासकर मुस्लिम समुदाय की सोच को बदलने को लेकर शायद पहली बार संस्थागत और व्यापक स्तर पर सोचना और रणनीति पर अमल करना शुरू किया था। उस समय तक रामजन्मभूमि मंदिर यानी अयोध्या का विवाद लटका हुआ था और यह किसी को भी नहीं पता था कि इसका समाधान कैसे होगा क्योंकि कई राजनीतिक दलों के समर्थन की बैशाखी पर टिकी अटल सरकार ने इस मुद्दें को ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

अटल सरकार के दौरान ही यह भी सोचा गया कि भाजपा परिवार के प्रति मुस्लिमों की सोच बदलने के लिए आरएसएस के फ्रंट पर भी प्रयास करने की जरूरत है और अटल सरकार के सत्ता में रहने के दौरान ही संघ ने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना की और इसकी कमान अपने एक वरिष्ठ और अनुभवी नेता इंद्रेश कुमार को सौंपी। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने देश भर में हजारों कार्यक्रम करके मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ ईसाईयों के साथ भी संवाद स्थापित किए, कार्यक्रम किए और उसे कई मोचरें पर अहम कामयाबी भी मिली।

--आईएएनएस

एसटीपी/एएनएम

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