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Darbhanga ज्वालामुखी भगवती की 700 साल पहले बाबा लखतराज ने कराई थी स्थापना

मंदिर के पुजारी जीवछ पाठक, पंचायत के पूर्व मुखिया व परामर्श समिति अध्यक्ष डॉ. अनिल झा उर्फ गुलाब, पूर्व पंसस पवन झा, पूर्व सरपंच शंकर झा, कहते हैं कि वैशाख माह में सीमावर्ती सहरसा जिले के सभी गांवों के भक्त सामूहिक रूप से कमल फूल का भार लेकर यहां मां ज्वालामुखी का पूजन करने के लिए विगत कई वर्षों से आते हैं। पूरे गांव के लोग उन भक्तों के सेवा सत्कार में लगे रहते हैं। वहीं नेपाल के राजविराज सप्तरी और बंगाल की नोवा मंडी जैसे दूर दराज के इलाकों से भी भक्तगण यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। वहीं इस मंदिर की उत्तर दिशा में शंभू बाबा का आश्रम है।


बिहार न्यूज़ डेस्क !!! ग्रामीणों ने बताया है कि, करीब 700 पहले वर्ष पहले आधारपुर पंचायत के ऊफरौल गांव के बाबा लखतराज पांडेय जीवन-यापन की तलाश में हिमाचल प्रदेश के नगरकोट गए थे। वहां मां ज्वालामुखी की पूजा-अर्चना सेवा में समर्पित हो गए और पूजा-अर्चना से खुश होकर मातारानी ने राजा को साक्षात दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा  जिसके बाद भक्त पांडेय ने उनसे गांव चलने की बात कही और माता रानी ने उनकी यह बात मान ली और साथ में चल दी।

जिसके बाद वो दोनों लखतराज कसरौड़ के विशाल जंगल होकर गुजर रहे थे मगर थकान होने पर वे उक्त जंगल में आराम करने लगे जिसके कुछ समय बाद भक्त ने मातारानी को चलने का आग्रह किया मगर मातारानी ने उसी जंगल को सुन्दर व स्वच्छ बताते हुए यहीं स्थापित होने की इच्छा जताई जिसके बाद राजा ने मातारानी को वहां स्थापित कर पूजा अर्चना करने लगे जिसके बाद इस गांव का नाम उसी समय से ज्वालामुखी कसरौड़ से विख्यात हुआ । बताया जा रहा है कि, यह मंदिर परिसर 6 एकड़ में फैला है ।

मंदिर के पुजारी जीवछ पाठक, पंचायत के पूर्व मुखिया व परामर्श समिति अध्यक्ष डॉ. अनिल झा उर्फ गुलाब, पूर्व पंसस पवन झा, पूर्व सरपंच शंकर झा, कहते हैं कि वैशाख माह में सीमावर्ती सहरसा जिले के सभी गांवों के भक्त सामूहिक रूप से कमल फूल का भार लेकर यहां मां ज्वालामुखी का पूजन करने के लिए विगत कई वर्षों से आते हैं ।

दरभंगा न्यूज़ डेस्क !!!

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