झारखंड की चुनावी राजनीति और जेल, कोई बना 'स्टार' तो किसी को मिली 'हार'
रांची, 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। झारखंड की चुनावी राजनीति और जेल के बीच खास रिश्ता रहा है। ‘काली कोठरी’ ने जहां कई नेताओं के राजनीतिक करियर को चमक दी, कई ऐसे नेता हैं, जिन्होंने जेल यात्रा के बाद सियासत में अवसान भी देखा है। इस विधानसभा चुनाव में भी कई क्षेत्रों के चुनावी खेल में ‘जेल’ का फैक्टर अहम साबित होगा। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस चुनाव में अपना नारा दिया है- "जेल का जवाब जीत से।"
पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और सीएम हेमंत सोरेन के जेल से जमानत पर बाहर निकले करीब चार महीने गुजर चुके हैं, लेकिन वह और उनकी पार्टी इस चुनाव में "जेल चैप्टर" को जिंदा रखने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही। हेमंत सोरेन हर चुनावी सभा में कह रहे हैं कि उन्होंने केंद्र सरकार से झारखंड के हक का 1 लाख 36 हजार करोड़ मांगा, तो उन्हें जेल में डाल दिया गया।
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी सीएम हेमंत सोरेन, उनकी सरकार में मंत्री रहे आलमगीर आलम और सरकार के कई अफसरों की जेल यात्रा को भ्रष्टाचार के मुद्दे के तौर पर उछाल रही है।
राज्य में भाजपा की ओर से चुनावी कमान संभाल रहे असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा कहते हैं, "कई लोग झारखंड आंदोलन और भारत के स्वाधीनता संग्राम में जेल गए थे। हेमंत सोरेन को बताना चाहिए कि वो जेल क्यों गए थे? भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद उनके मंत्री आलमगीर आलम भी कहें कि उन्होंने जेल जाकर बड़ी कुर्बानी दी है तो इससे बड़ा झूठ क्या होगा?"
झारखंड की दो सीटें कोडरमा और पाकुड़ ऐसी हैं, जहां इस बार जेल फैक्टर की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। कोडरमा सीट पर इंडिया ब्लॉक के साझा उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे राष्ट्रीय जनता दल के सुभाष यादव बिहार के बहुचर्चित बालू घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में जेल में बंद हैं। उन्होंने अदालत की इजाजत से पुलिस हिरासत में कोडरमा आकर पर्चा भरा था। उनके समर्थकों ने सुभाष यादव की तस्वीरों वाले झंडे और बैनर-पोस्टर के साथ प्रचार शुरू कर दिया है।
इसी तरह पाकुड़ सीट पर कांग्रेस ने जेल में बंद हेमंत सोरेन सरकार के पूर्व मंत्री आलमगीर आलम की पत्नी निशात आलम को उम्मीदवार बनाया है। निशात आलम इसके पहले कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रहीं। वह जेल में बंद अपने पति के नाम पर ही मैदान में हैं। जेल में बंद कुख्यात नक्सली कमांडर बैजनाथ सिंह ने राज्य की मनिका सीट से जोर-आजमाईश की पूरी तैयारी की थी। उसने नामांकन पत्र भी दाखिल किया था, लेकिन तकनीकी कारणों से उसका पर्चा खारिज हो गया।
इसी तरह 150 से भी अधिक आपराधिक मामलों में जेल में बंद गैंगस्टर अमन साहू ने भी झारखंड के चुनाव में पर्चा भरने के लिए झारखंड से लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट तक याचिका दायर की, लेकिन अदालत ने उसे इजाजत नहीं दी। झारखंड के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो जनांदोलनों में जेल जाने वाले नेताओं को जनता ने कई बार चुनावी जीत दिलाई है। वर्ष 1977 में मार्क्सवादी समन्वय समिति के नेता कॉमरेड एके. राय इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन की वजह से करीब दो वर्षों से जेल में थे। इस बीच देश में आम चुनाव का ऐलान हुआ।
एके. राय ने जेल से ही धनबाद लोकसभा क्षेत्र का चुनाव लड़ा। धनबाद की जनता ने उन्हें सिर-आंखों पर बिठाकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचा दिया। इसी तरह शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो, निर्मल महतो सरीखे दर्जनों ऐसे नेता रहे, जिन्होंने जनांदोलनों के दौरान जेल यात्रा की और चुनावी राजनीति में रहते हुए इन्हें जनता का खूब समर्थन हासिल हुआ।
1989 में हजारीबाग में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। भड़काऊ भाषण देने के आरोप में बजरंग दल के नेता यदुनाथ पांडेय को सरकार ने गुंडा एक्ट में जेल में डाल दिया था। इसके बाद इसी साल देश में चुनाव हुए।
यदुनाथ पांडेय जेल से निकलकर बाहर आए थे। भाजपा ने उन्हें हजारीबाग से उम्मीदवार बनाया और वे भारी मतों से जीतकर संसद जा पहुंचे थे। 1990 में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव में पांकी विधानसभा क्षेत्र से मधु सिंह ने जेल में रहते हुए चुनाव लड़ा और विजयी भी रहे।
इसके पूर्व पांकी क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतरे कांग्रेस नेता संकटेश्वर सिंह को चुनाव के दौरान ही एक मामले में गिरफ्तार होकर जेल जाना पड़ा था। जेल में ही रहते हुए उन्होंने इस चुनाव में जीत हासिल की। 2009 में देश में हुए आम चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सासाराम जेल में बंद नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा को अपना प्रत्याशी बनाया तो लोग चौंक गए थे। बैठा ने जेल में ही रहते हुए यह चुनाव जीता तो इसकी चर्चा पूरे देश में हुई। कामेश्वर बैठा पर उस वक्त करीब 60 मामले दर्ज थे।
2009 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने खूंटी से मसीह चरण पूर्ति और तोरपा से पौलुस सुरीन को प्रत्याशी बनाया। दोनों ही नक्सली हिंसा के आरोपों में जेल में बंद थे। मसीह को पराजय हाथ लगी, जबकि पौलुस सुरीन ने जेल में रहते हुए ही जीत दर्ज की। 2009 में तमाड़ सीट पर हुए उपचुनाव में झामुमो के प्रमुख और तत्कालीन सीएम शिबू सोरेन को गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर नामक ऐसे प्रत्याशी के हाथों करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा, जो विभिन्न मामलों में कई बार जेल जाने और जेल से निकलने के बाद सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हुए थे।
ऐसा नहीं है कि काली कोठरी ने तमाम नेताओं के करियर को चमक दी है। कुछ ऐसे नेता भी हैं, जिनके राजनीतिक करियर पर जेल यात्राओं के बाद ग्रहण लग गया है। ऐसे नेताओं में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, पूर्व मंत्री एनोस एक्का और हरिनारायण राय के नाम शुमार हैं।
--आईएएनएस
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