बैडमिंटन की रानी: पुरुषों के प्रभुत्व वाले दौर में अमी घिया शाह ने बनाया था अपना अलग मकाम
नई दिल्ली, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत में बैडमिंटन की चर्चा चलते ही जिन महिला खिलाड़ियों का नाम हमारे जेहन में सर्वप्रथम आता है उनमें सायना नेहवाल और पीवी सिंधु प्रमुख हैं। दोनों खिलाड़ियों ने बैडमिंटन में देश के लिए ओलंपिक पदक जीता है। एक नाम और है जिसने उस समय में बैडमिंटन थामा था, जब महिलाओं के लिए इस खेल में हिस्सा लेना या करियर बनाने का फैसला लेना बिल्कुल आसान नहीं था। इस खिलाड़ी का नाम अमी घिया शाह है।
अमी घिया शाह का जन्म 8 दिसंबर 1956 को गुजरात के सूरत में हुआ था। उनका बचपन मुंबई में बीता। अमी को बचपन से ही बैडमिंटन से लगाव था और वह इस खेल में बड़ी उपलब्धि हासिल करने का सपना देखती थीं और इसके लिए कड़ी मेहनत करती थीं। स्पष्ट लक्ष्य और उसे पाने के लिए अमी की कड़ी मेहनत ने जल्द ही उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला दी थी। लंबाई कम होने के बावजूद अमी अद्भुत कोर्टक्राफ्ट, शटल कंट्रोल और लाइन जजमेंट के लिए जानी जाती थीं।
1970 का दशक अमी घिया शाह के करियर के उत्कर्ष का दशक था। वह सात बार राष्ट्रीय सिंगल्स चैंपियन बनीं। इसके अलावा, डबल्स में उन्होंने 12 बार और मिक्स्ड डबल्स में चार बार राष्ट्रीय खिताब जीते। अपने 19 साल के करियर में अमी ने 36 फाइनल खेले जिसमें 15 एकल फाइनल थे। इन सफलताओं की वजह से उस दौर में अमी को 'बैडमिंटन की रानी' कहा जाता था।
अमी ने अपनी साथी खिलाड़ी कनवाल ठाकुर सिंह के साथ 1978 के एडमॉन्टन कॉमनवेल्थ गेम्स में कांस्य पदक जीता, जो भारतीय महिलाओं के लिए पहला सीडब्ल्यूजी बैडमिंटन मेडल था। बैडमिंटन में पुरुषों के आधिपत्य वाले दौर में अमी और उनके साथी की यह उपलब्धि भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए बड़ी प्रेरणा थी। अमी ने विश्व कप और एशियन गेम्स में भी हिस्सा लिया था।
अमी घिया शाह को 1976 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1973 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें शिव छत्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया था।
--आईएएनएस
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