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Shivratri 2025: ऋषि कश्यप ने भगवान शिव को क्यों दिया था ये भयंकर श्राप? जानिए कैसे गणेशजी को भुगतना पड़ा था इसका परिणाम

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भगवान् शिव एक क्रोधित देव के साथ-साथ एक उदार देवता भी माने जाते हैं। उनकी शरण में जो भी जाता है, उन सभी को सुरक्षा अवश्य मिलती है। इसी प्रकार एक बार दैत्‍य माली और सुमाली भी उनकी शरण में अपनी पुकार लेकर पहुंचे। वे गंभीर शारीरिक पीड़ा से त्रस्‍त थे क्योंकि सूर्य देव उनपर कृपा नहीं कर रहे थे।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने जब उनकी व्यथा सूनी, तो वे अत्‍यंत क्रोधित हो गए और क्रोध में आकर उन्होंने सूर्यदेव पर अपने त्रिशूल से प्रहार कर द‍िया। सूर्यदेव, भोलेनाथ का प्रहार सहन नहीं कर पाए और रथ से नीचे गिर कर अचेत हो गए और उनकी मृत्यु हो गयी। उनके गिरते ही संपूर्ण सृष्टि अंधकार में डूब गई। अपने पुत्र को इस हालत में देख प‍िता कश्‍यप ऋषि क्रोध में आग बबूला होकर भगवान् शिव के पास पहुँचे और आवेश में आकर उन्‍होंने शिवजी को शाप दे डाला। उन्‍होंने कहा कि जिस तरह से आज वह अपने पुत्र की हालत पर रो रहे हैं, एक द‍िन उन्‍हें भी अपने पुत्र के मौत से ऐसे ही दु:खी होना पड़ेगा।

जब भगवान श‍िव का क्रोध शांत हुआ, तो उन्‍होंने देखा कि संपूर्ण सृष्टि में अंधकार है। तब उन्‍होंने सूर्य देव को जीवन दान देने का फैसला दिया। लेकिन जब उन्हें ऋषि कश्यप के श्राप के बारे में पता चला, तो उन्होंने अपने परिवार को त्यागने का फैसला लिया। ब्रह्मा जी के बहुत अनुरोध पर ऋषि कश्यप ने अपने श्राप पर पुनर्विचार किया। उन्होंने कहा की शिवजी का पुत्र उनके ही हाथों अवश्य मारा जाएगा लेकिन मेरे पुत्र के भांति ही उसे जीवनदान अवश्य मिलेगा।

ऋषि कश्यप का श्राप कैसे हुआ फलित ऋषि कश्यप के श्राप का ही प्रभाव था कि भगवान् शिव ने क्रोध में आकर अपने पुत्र गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया था। देवी पार्वती ने जब यह देखा, तो वे बहुत क्रोधित हो गयी थीं। भगवान् शिव को भी जब कि गणेशजी उनका अपमान नहीं कर रहे थे बल्कि अपनी माता का आज्ञा का पालन कर रहे थे, तो उन्हें अपने ही पुत्र का वध करने का बहुत दुःख होने लगा। तब सभी देवताओं ने मिलकर शिवजी से बालक को पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया क्योंकि माता पार्वती के क्रोध के कारण सम्पूर्ण सृष्टि में हाहाकार मच गया था। तब भगवान शंकर के कहने पर विष्णुजी एक हाथी का सिर काटकर लाए और वह सिर उन्होंने उस बालक के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर दिया। तभी से भगवान् गणेश का नाम गजानन पड़ गया।

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