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Shivratri 2025: आखिर क्यों अर्जुन को करना पड़ा था भगवान शिव से भयंकर युद्ध ? जानिए क्यों पांडवों से छिप रहे थे महाकाल 

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एक पौराणिक कथा के अनुसार, जन पांडव बारह वर्ष का वनवास काट रहे थे, तो एक वर्ष के अज्ञात वास में भगवान् श्रीकृष्ण ने पांडवों को अलग-अलग कार्य सौंपे थे। इसी में उन्होंने अर्जुन को दिव्यास्त्रों को इकट्ठा करने करने भेजा था। अर्जुन को जो अस्त्र जमा करने थे, उसमें सबसे जरूरी पाशुपतास्त्र था, जो केवल शिवजी के ही पास था। इसलिए, उसे पाने के लिए अर्जुन उनकी तपस्या करने लगा। भगवान् शिव अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए किरात (शिकारी)का रूप धरकर वहाँ पहुंचे। उसी समय वहाँ एक मूकासुर नाम का दैत्य, जंगली सूअर बनकर आतंक मचा रहा था, जिससे अर्जुन का ध्यान भंग हो गया। विकराल सूअर को उत्पात मचाते देख, अर्जुन ने उसपर तीर चला दिया लेकिन उस सूअर को एक नहीं बल्कि एकसाथ दो तीर आ लगे। इससे अर्जुन चौंक गया। जब उसने आसपास नजरें घुमाई, तो देखा थोड़ी दूर पर एक शिकारी भी धनुष ताने खडा था। अब सूअर को किसने मारा, इस बात पर दोनों बहस करने लगे। बहस करते वक्त अर्जुन ने अहंकार में खुद को संसार का सबसे बड़ा धनुर्धर बता दिया। इसके बाद किरात रूप धारण किये हुए शिवजी और अर्जुन में युद्ध छिड़ गया।

दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा लेकिन अर्जुन किरात पर जितने भी वार करता सब विफल जाते। उसने अर्जुन द्वारा प्रयोग किये गए सभी अस्त्रों को नष्ट कर दिया। किरात ने फिर अर्जुनको उठाकर दूर फेंक दिया। किरात के रूप में शिवजी का स्पर्श पाते ही अर्जुन को अपनी तपस्या याद आई और उसे यह युद्ध बेकार लगने लगा। उसे लगा कि वह अपने लक्ष्य से भटक रहा है। फिर उसने युद्ध छोड़कर रेत से शिवलिंग बनाया और पूजा करने लगा। किरात ने उसे फिर से ललकारा लेकिन जब अर्जुन ने किरात को देख तो आश्चर्य से भर गया। उसने पूजा के दौरान जो फूलों की माला शिवलिंग पर चढ़ाई थी, वही किरात के गले में दिख रही थी।यह देखकर अर्जुन समझ गया कि किरात के रूप में स्वयं भगवान शिव हैं, जो उसकी परिक्षा ले रहे थे। अर्जुन उनके चरणों में गिरकर माफी मांगने लगा। तब शिवजी अपने असली रूप में प्रकट हुए और उसे वरदान स्वरुप अभेद्य पाशुपत अस्त्र दिया और युद्ध में विजय होने का वरदान भी।

क्यों शिवजी छिप रहे थे पांडवों से?भगवान् शिव पांडवों के जीवन के एक बार तब फिर आते हैं, जब पांडवों का मन राज-पात से उचट गया था और उन्हें सलाह दी गयी कि उन्हें मुक्ति का मार्ग तो सिर्फ शिवजी ही बता सकते हैं। महाभारत में रक्तपात करने के कारण शिवजी पांडवों को स्वर्ग का अधिकारी नहीं मानते थे, इसलिए वो लुप्त हो गए। पांडव काशी गए, हिमालय गए लेकिन पांडवों को भगवान् शिव दर्शन नहीं देना चाहते थे। जब पांडव केदार पहुंचे, तो शिवजी बैल का रूप बनाकर भागने लगे, लेकिन भीम ने उन्हें पहचान लिया और उन्हें किसी तरह पकड़ लिया। पांडवों के दृढ संकल्प देखकर शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें पाप मुक्त कर दिया। फिर पांडवों ने अपनी स्वर्ग की यात्रा शुरू की।

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