
ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: सनातन धर्म में कई ऐसे पवित्र ग्रंथ हैं जिसमें मानव जीवन से जुड़ी हम बातें बताई गई हैं वही हम रामचरित मानस की बात कर रहे हैं जिसे तुलसीदास द्वारा रचित माना गया है इसके लंकाकांड में एक प्रसंग आता है
जब अंगद भगवान श्रीराम के दूत बनकर लंका जाते हैं और वहां रावण और अंगद के बीच की बात चीत होती है। इसी बात चीत में अंगद रावण को बताते हैं कि किस तरह के लोग जीते जी मरे के समान होते हैं तो आज हम आपको इन्हीं के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
इन लोगों को माना गया है मरे के समान—
जो लोग अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, ऐसे लोग मृतक के समान माने जाते हैं क्योंकि उसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती हैं। इसके अलावा जो लोग हर बात के पीछे नकारात्मकता देखते हैं या खोलते हैं नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलते हैं ऐसे लोग भी मरे के समान होते हैं। जो व्यक्ति पैसा होने पर भी जरूरी कामों में इसे खर्च नहीं करता है उसे भी मरे हुए के समान ही माना जाता है। जो लोग धन, सम्मान और साहस से हीन होते हैं वे मृतक के समान ही माने जाते हैं।
जिसके पास विवेक और बुद्धि नहीं होती है जो खुद कोई फैसला नहीं कर सकता है ऐसा मनुष्य भी मृतक ही माना जाता है इसके अलावा जो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र, कहीं सम्मान नहीं पाता हो ऐसा व्यक्ति भी मृत ही माना जाता है हमेशा रोगी रहने वाला मनुष्य भी मरा हुआ होता है इसके अलावा अधिक वृद्ध लोग भी मृतक ही माने जाते हैं।