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शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग जाने दोनों में अंतर क्या शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग कहा जा सकता है,जाने शिव जी की महिमा 

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महाशिवरात्रि आने वाली है और इस पावन अवसर पर कुछ लोग शिवलिंग की पूजा करते हैं और कुछ लोग ज्योतिर्लिंग की लेकिन कई लोग इनके बीच का अंतर और इनका महत्व नहीं समझ पाते हैं। वो ये नहीं जानते कि दोनों भले ही शिवजी का प्रतीक हैं लेकिन दोनों की महिमा अलग-अलग है और दोनों से मिलने वाला पुण्य भी अलग-अलग है। तो, चलिए समझते हैं ये अंतर...

शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग में अंतर
शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग में एक महत्वपूर्ण अंतर होता है। शिवलिंग भगवान शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक होता है जबकि ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के ज्योति स्वरूप का प्रतीक होता है। शिवलिंग को आप घर में रखा सकते हैं लेकिन इसे हमेशा जलधारा के साथ रखना चाहिए। वहीं, ज्योतिर्लिंग केवल कुछ विशेष स्थलों पर स्थित होते हैं, जहां भगवान शिव ने अपने ज्योति स्वरूप का प्रकटीकरण किया था। शिवलिंग भगवान शिव के निराकार रूप का प्रतीक है जबकि ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के स्वयंभू रूप का प्रतीक है। शिवलिंग को मानव द्वारा बनाया जा सकता है या यह स्वयंभू भी हो सकता है, जबकि ज्योतिर्लिंग हमेशा स्वयंभू (अपने आप प्रकट होना) होते हैं।

कहाँ स्थित हैं ये 12 ज्योतिर्लिंग
हिंदू धर्म में कुल 12 ज्योतिर्लिंग का उल्लेख है। ये ज्योतिर्लिंग भव्य मंदिरों में स्थापित हैं, जैसे कि सोमेश्वर या सोमनाथ, श्रीशैलम मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमाशंकर, विश्वेश्वर, त्र्यम्बकेश्वर, वैद्यनाथ महादेव, नागेश्वर महादेव, रामेश्वरम और घुष्मेश्वर। सोमनाथ को प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है जो गुजरात में स्थित है।

शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग क्यों नहीं कहा जा सकता
शिवलिंग मनुष्य द्वारा स्थापित होता है और ये आपको पूरी देशभर में लाखों की संख्या में मिल जायेंगे। शिवलिंग की पूजा के लिए पंडितों की आवश्यकता नहीं पड़ती और कई लोग घर में भी शिवलिंग की पूजा खुद कर सकते हैं। लेकिन ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि उसमें साक्षात शिवजी स्वयं वास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में एक बार शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर लेता है, वह सभी दोषों से मुक्त होकर मृत्यु पश्चात मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। इसलिए, शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग नहीं कहा जा सकता है क्योंकि ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के विशेष प्रकटीकरण का प्रतीक होते हैं।

शास्त्रों में मिलता है 6 प्रकार के शिवलिंग का वर्णन
पुराणों के अनुसार, शिवलिंग 6 प्रकार होते हैं।
देव लिंग : जिन शिवलिंगों को देवताओं द्वारा स्थापित किया गया, उसे देव लिंग कहा गया है।
असुर लिंग : जिन शिवलिंगों को असुरों द्वारा स्थापित किया गया, वह असुर लिंग कहलाया।
अर्श लिंग : जिन शिवलिंगों को अगस्त्य मुनि जैसे संतों द्वारा स्थापित किया गया है, उन्हें अर्श लिंग कहा गया।
पुराण लिंग : जिन शिवलिंगों को पौराणिक काल के व्यक्तियों द्वारा स्थापित किया गया है, उन्हें पुराण शिवलिंग कहा गया है।
मनुष्य लिंग : जिन शिवलिंगों को ऐतिहासिक महापुरुषों, अमीरों, राजा-महाराजाओं द्वारा स्थापित किया गया, उन्हें मनुष्य शिवलिंग कहा गया है।
स्वयंभू लिंग : जिन शिवलिंगों में भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए, उन्हें स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं।

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