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गीता के अनुसार!!! ऐसे लोग आते हैं असुर प्रवृत्ति के अंदर जाने उनका अंत कैसा होता है

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गीता में न सिर्फ मनुष्य को जीने के तरीके बताये गए हैं बल्कि उन्हें गुण और अवगुण के बारे में भी बताया गया है, ताकि वो अपनी प्रकृति में सुधार कर आध्यात्मिक उन्नति की तरफ उठ सकें। कलियुग में जहां इंसान और इंसानियत बहुत तेजी से बदल रही है, ऐसे में उन्हें खुद को संभालने और संतुलित रखने के लिए गीता के ज्ञान की अत्यंत आवश्यकता है। आज मनुष्य कलियुगी हो रहा है और अपने विनाश का खुद ही कारण बन रहा है। उनमें सद्गुण की जगह तमोगुण का विकास हो रहा। भगवद् गीता में, भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य की विभिन्न प्रवृत्तियों यानि सतोगुण, रजोगुण, और तमोगुण के बारे में बताया है। इसलिए उनके लिए ये जानना आवश्यक है कि एक व्यक्ति किस प्रकार असुर प्रवृत्ति का बन जाता है और फिर उसका अंत कैसा होता है। चलिए गीता के माध्यम से ये जानते हैं...

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि पाखण्ड, दम्भ, अभिमान, क्रोध, निष्ठुरता और अज्ञानता आसुरी प्रकृति वाले लोगों के गुण हैं। जब अर्जुन को लगता है कि अपने परिजनों पर तीर चलाना निष्ठुरता है, तो श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि हे अर्जुन! शोक मत करो क्योंकि तुम दैवीय गुणों के साथ जन्मे हो। मनुष्य का दैवीय गुण मुक्ति की ओर ले जाते हैं, जबकि आसुरी गुण निरन्तर बंधन की नियति का कारण होते हैं।

गीता के अनुसार, आसुरी गुण मनुष्य को मोह की बेड़ियों में जकड़े होते हैं और कोई एक भी आसुरी गुण जब व्यक्तित्व में रह जाता है, तो यह उसके असफलता का कारण बन जाता है। श्रीकृष्ण का कहना है कि सभी जीवात्माएँ अपने पूर्व जन्म की प्रवृतियों को अपने साथ ढोए रहती हैं। इसलिए, जो पिछले जन्म में सदगुणी थी, वे दैवीय गुणों के साथ जन्म लेते हैं, लेकिन जिन्होंने अपने मन को पाप में लिप्त रखा, जो अवगुणी थे, वो उन्हीं अवगुणों के साथ जन्म लेते हैं। इसी कारण से संसार में लोगों के स्वभाव में इतनी विविधता दिखाई देती है।

गीता के अनुसार, मनुष्यों में दैवीय और आसुरी लक्षणों का मिश्रण होता है और कई बार कसाई दयालु हो जाते हैं और कभी-कभी प्रबुद्ध आध्यात्मिक साधकों के गुणों में विकार देखने को मिलते हैं। कलियुग में ईश्वरीय और आसुरी गुण एक साथ मनुष्यों के हृदय में रहते हैं, इसलिए जहाँ एक ओर उन्नत आत्मा उसे ऊपर उठाकर भगवान की ओर आकृष्ट करती है, वहीं दूसरी ओर अवनत आत्मा उसे पतन की ओर ले जाती है।

श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे जो आसुरी गुणों से युक्त होते हैं, वे यह समझ नहीं पाते कि उचित और अनुचित कर्म क्या हैं। इसलिए उनमें न तो पवित्रता, न ही सदाचरण और न ही सत्यता पायी जाती है। वे ऐसी अंतहीन चिंताओं से पीड़ित रहते हैं जो मृत्यु होने पर समाप्त होती हैं। अहंकार, शक्ति, दम्भ, कामना और क्रोध से अंधे असुर मनुष्य अपने शरीर के भीतर और अन्य लोगों के शरीरों के भीतर मेरी उपस्थिति की निंदा करते हैं। असुर प्रवृत्ति के लोग अत्यधिक क्रोधी और हिंसक होते हैं। वे छोटी-छोटी बातों पर उग्र हो जाते हैं और दूसरों को हानि पहुँचाने में संकोच नहीं करते। इन लोगों में न्याय और करुणा का अभाव होता है। वे अन्याय और अत्याचार करते हैं और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने में संकोच नहीं करते।
 

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