
उत्तरप्रदेश न्यूज़ डेस्क जीन में हो रहे बदलाव से महिलाएं और युवतियां झाईं (हाइपर पिगमेंटेशन) की शिकार हो रही हैं. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चर्म रोग और माइक्रोबायोलॉजी विभाग के शुरुआती शोध में यह जानकारी सामने आई है. दोनों विभागों ने इस पर डेटा एनालिसिस शुरू कर दिया है. दो से तीन माह में यह भी पता चल सकेगा कि ऐसी महिलाओं के जीन में बदलाव की क्या स्थिति है.
एम्स के चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील कुमार गुप्ता ने बताया कि पूर्वांचल में महिलाओं के चेहरे पर झाईं होने का बड़ा कारण मेलेनोसाइट इंडेक्शन ट्रांसफार्मिंग फैक्टर है. यह दिक्कत महिलाओं के जीन में बदलाव के कारण होती है.
शोध में यह जानने की कोशिश की जा रही है कि इन युवतियों और महिलाओं में जीन का स्तर कितना बढ़ा हुआ है. इसके लिए डाटा एनालिसिस किया जा रहा है. बताया कि अब तक यह तो पता चल गया है कि जीन में बदलाव के कारण एक बार हो रही झाईं चेहरे जा नहीं रही है. दवा के असर होने तक झाईं नहीं हो रही है.
लेकिन, असर खत्म होते ही फिर से वहीं समस्या देखने को मिल रही है. जीन स्तर का पता चलने के बाद युवतियों और महिलाओं को दवाएं उसी अनुसार दी जाएंगी.
रक्त के नमूने लेकर की गई जांच: एम्स ने कुल 200 के महिलाओं और युवतियों के रक्त के नमूने लिए गए. इनमें 100 झाईं से पीड़ित और 100 सामान्य महिलाएं शामिल हैं. जांच में झाईं पीड़ित महिलाओं और युवतियों में हार्मोनल इंबैलेंस, जेनेटिक फैक्टर में बदलाव मिला. जबकि, सामान्य महिलाओं में कोई बदलाव नहीं मिला.
दवा बंद होते ही फिर होने लगती है दिक्कत: डॉ. सुनील ने बताया कि झाईं की दवा काफी महंगी होती है. साथ ही दवा का इस्तेमाल बंद करने के बाद फिर से समस्या शुरू हो जा रही है. शोध के बाद स्थिति साफ हो जाएगी कि ऐसे मरीजों पर किस तरह की दवा असरदार होगी.
गोरखपुर न्यूज़ डेस्क