ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म कथाओं और ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण अपने बाल रूप में बहुत सारी दिव्य लीला किया करते थे तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा भगवान श्रीकृष्ण और कुम्हार की एक ऐसी ही रोचक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।
भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ बहुत सी लीला की हैं श्रीकृष्ण गोपियों की मटकी फोड़ते और माखन चुराते और गोपियां श्री कृष्ण का उलाहना लेकर यशोदा मैया के पास जाती। ऐसा बहुत बार हुआ। एक बार की बात है कि यशोदा मैया श्रीकृष्ण के उलाहनों से तंग आ गई और छड़ी लेकर श्रीकृष्ण की ओर दौड़ी। जब प्रभु ने अपनी मैया को क्रोध में देखा तो वह अपना बचाव करने के लिए भागने लगे। भागते भागते श्रीकृष्ण एक कुम्हार के पास पहुंचे। कुम्हार तो अपने मिट्टी के घड़े बनाने में व्यस्त था। मगर जैसे ही कुम्हार ने श्रीकृष्ण को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। कुम्हार जानता था कि श्रीकृष्ण साक्षात् परमेश्वर हैं
तब प्रभु ने कुम्हार से कहा कि कुम्हार जी आज मेरी मैया मुझ पर बहुत क्रोधित हैं मैया छड़ी लेकर मेरे पीछे आ रही है भैया मुझे कहीं छुपा लों। तब कुम्हार ने श्रीकृष्ण को एक बड़े से मटके के नीचे छिपा दिया। कुछ ही क्षणों में मैया यशोदा भी वहां आ गईं और कुम्हार से पूछने लगी क्यूं रे कुम्हार तूने मेरे कन्हैया को कहीं देखा हैं क्या। कुम्हार ने कह दिया नहीं, मैया मैने कन्हैया को नहीं देखा। श्रीकृष्ण यह सब बातें बड़ें से घड़े के नीचेछुपकर सुन रहे थे मैया तो वहां से चली गयी। अब प्रभु कुम्हार से कहते हैं कुम्हार जी अगर मैया चली गई हो तो मुझे इस घड़े से बाहर निकालों। कुम्हार बोला ऐसे नहीं, प्रभु जी पहले मुझ चौरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त करने का वचन दो।
भगवान मुस्कुराए और कहा ठीक है मैं तुम्हें चौरासी लाख योनियों से मुक्त करने का वचन देता हूं अब तो मुझे बाहर निकाल दो। कुम्हार कहने लगा मुझे अकेले नहीं, प्रभु जी मेरे परिवार के सभी लोगों को भी चौरासी लाख योनियों क बंधन से मुक्त करने का वचन दोगे तो मैं आपको इस घड़े से बाहर निकालूंगा। प्रभु बोले चलो ठीक हैं उनको भी चौरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त होने का मैं वचन देता हूं। अब तो मुझे घड़े से बाहर निकाल दो। अब कुम्हार कहता है बस प्रभु जी एक विनती और है उसे भी पूरा करने का वचन दे दो तो मैं आपको घड़े से बाहर निकाल दूंगा। भगवान बोले वो भी बता दे क्या कहना चाहते हो। कुम्हार कहने लगा प्रभु जिस घड़े के नीचे आप छुपे हो, उसकी मिट्टी मेरे बैलों के उपर लाद के लाई गई हैं मेरे इन बैलों को भी चौरासी के बंधन से मुक्त करने का वचन दो।
श्रीकृष्ण ने कुम्हार के प्रेम से प्रसन्न होकर उन बैलों को भी चौरासी के बंधन से मुक्त होने का वचन दिया। प्रभु बोले अब तो तुम्हारी सब इच्छा पूरी हो गईं अब तो मुझे घड़े से बाहर निकाल दो। तब कुम्हार बोला अभी नहीं भगवन एक अंतिम इच्छा और है उसे भी पूरी करें और वह यह हैं कि जो भी प्राणी हम दोनों के बीच के इस संवाद को सुनेगा। उसे भी आप चौरासी लाख योनियों के बंधन से मुक्त करोगे। बस यह वचन दे दो तो मैं आपको इस घड़े से बाहर निकाल दूंगा। कुम्हार की प्रेम भरी बातों को सुन कर प्रभु श्रीकृष्ण प्रसन्न हुए और कुम्हार की इस इच्छा को भी पूरा करने का वचन दिया। फिर कुम्हार ने बाल श्रीकृष्ण को घड़े से बाहर निकाल दिया। उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। प्रभु जी के चरण धोए और चरणामृत लिया। अपनी पूरी झोपड़ी में चरणामृत का छिड़काव किया और प्रभु के गले लगकर इतना रोये कि प्रभु में ही विलीन हो गए।