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जब विवश होकर राजा दशरथ ने शनि पर ताना धनुष बाण

Shanidev and dasaratha story

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: हिंदू धर्म और ज्योतिषशास्त्र में शनि को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है शनिदेव को न्याय प्रिय देवता कहा जाता है मान्यता है कि शनि जिस पर प्रसन्न हो जाए उसके जीवन में खुशियों की बरसात कर देते है लेकिन अगर किसी पर वे क्रोधित हो जाए तो उसे संकट के मझधार में छोड़ सकते है ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा महाराज दशरथ और शनिदेव से जुड़ी एक पौराणिक कथा बता रहे है तो बेहद दिलचस्प है तो आइए जानते है। 

Shanidev and dasaratha story

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शनि के किसी नक्षत्र में जाने पर उसके परिणाम स्वरूप 12 वर्षों तक राज्य में अकाल पड़ने की आशंका से राजा दशराि भयभीत हो उठे। पद्मपुराण में कथा है कि शनिदेव के कृतिका नक्षत्र से निकलकर रोहिणी में प्रवेश करने के फल के बारे में ज्योतिषयों ने राजा दशरथ को बताया कि इसे संकट भेद भी कहते है उन्होंने बताया कि इससे फल स्वरूप धरती पर पूरे 12 वर्षों के लिए अकाल पड़ता है।

Shanidev and dasaratha story 

जिसके बाद महाराज दशरथ ने वशिष्ट ऋषि मुनियों और ब्राह्माणों को बुलाकर इस संकट का उपाय पूछा, मगर सभी निराश थे कि ये योग तो ब्रह्मा के लिए भी असाध्य है इस पर राजा दशरथ दिव्य रथ पर दिव्यास्त्रों को लेकर अंतरिक्ष में सूर्य से भी सवा लाख योजन ऊपर नक्षत्र मंडल में पहुंच गए और रोहिणी नक्षत्र के पीछे से शनि देव पर निशान साधकर धनुष पर संहार अस्त्र चढ़ाकर खींचने। दशरथ को प्रत्यंचा चढ़ाते हुए देख शनि भयभीत होकर हंसने लगे और बोले हे राजन् मैं जिसकी तरफ देखता हूं वह भस्म हो जाता है मगर तुम्हारा प्रयास सराहनीय है उससे मैं प्रसन्न हूं और वर मांगों।

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राजा ने कहा जब तक पृथ्वी, चंद्र, सूर्य आदि हैं तब तक आप कभी रोहिणी नक्षत्र को नहीं भेंदेगे। इसके बाद शनि ने यह वर देने के बाद दशरथ से एक और वर मांगने को कहा। तब राजा बोले कि आप कभी भी नक्षत्र भेद न करें और कभी भी सूखा व भुखमरी न हो। यह कहते हुए महाराज दशरथ ने अपने धनुष को रख लिया और हाथ जोड़कर शनि की स्तुति करने लगे। राजा की इस प्रार्थना को सुन शनि प्रसन्न हुए और वर फिर से वर मांगने को कहा तो राजा दशरथ बोले कि आप कभी भी किसी को पीड़ा नहीं पहुंचाएंगे। इस पर शनिदेव ने कहा यह असंभव है क्योंकि जीवों को उनके कर्मों के अनुसार ही सुख और दुख की प्राप्ति होती है लेकिन फिर भी अगर तुम्हारें द्वारा की गई मेरी स्तुति का पाठ कोई पूरे भक्ति भाव से करेगा तो वह शनि पीड़ा से मुक्त हो जाएगा और उसे मैं कभी कोई कष्ट नहीं दूंगा। यह सुन महाराजा दशरथ अपनी नगरी अयोध्या वापस लौट गए। 

Shanidev and dasaratha story 

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