थार रेगिस्तान की रेत में दबे है कई पौराणिक रहस्य, 5 मिनट के इस वीडियो में जाने रामायण, महाभारत और सरस्वती नदी से जुड़ी गाथाएं
भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में फैला हुआ थार रेगिस्तान, जिसे "ग्रेट इंडियन डेजर्ट" भी कहा जाता है, केवल रेत के टीले और गर्म हवाओं का समुच्चय नहीं है। इसका पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व भारतीय संस्कृति, सभ्यता और धर्म के अनेक महत्वपूर्ण अध्यायों से जुड़ा हुआ है। यह भूमि ना केवल प्राकृतिक दृष्टि से अद्भुत है, बल्कि धार्मिक ग्रंथों, लोककथाओं और पुरातात्विक साक्ष्यों में भी थार की अहम भूमिका रही है। आइए जानते हैं कि कैसे यह रेगिस्तान भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास का साक्षी बना।
ऋषियों की तपोभूमि रही है थार की धरती
थार का क्षेत्र प्राचीनकाल से ही ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों की तपोभूमि रहा है। मान्यता है कि कई महर्षि और योगी यहां कठोर तपस्या कर सिद्धि प्राप्त करते थे। बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर जैसे क्षेत्रों में कई ऐसे स्थलों का जिक्र लोकगाथाओं और पुराणों में मिलता है जहां ऋषियों ने यज्ञ किए और धर्म की रक्षा के लिए तप किया।
रामायण और महाभारत काल से संबंध
थार क्षेत्र का उल्लेख रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथों में भी मिलता है। कहा जाता है कि भगवान राम ने लंका यात्रा के दौरान इस क्षेत्र को पार किया था। वहीं, महाभारत काल में भी थार क्षेत्र की भूमिका थी, जब अर्जुन और भीम ने अनेक राजाओं को पराजित कर यज्ञ के लिए कर वसूला था।जैसलमेर के पास स्थित 'लोध्रवा' को रामायण काल से जोड़ कर देखा जाता है। यह स्थान कभी समृद्ध नगरी था और कहा जाता है कि यहां वैदिक सभ्यता का गहरा प्रभाव था।
सांस्कृतिक परंपराओं में पौराणिकता की झलक
थार की लोकसंस्कृति में आज भी पौराणिक प्रतीकों की गूंज सुनाई देती है। लोकगीतों और लोककथाओं में देवी-देवताओं की कथाएं, युद्धों की गाथाएं और तपस्वियों की कहानियाँ संजोई जाती हैं। लोक कलाकारों द्वारा निभाई जाने वाली 'पाबूजी की फड़' जैसी पारंपरिक चित्र-कथाओं में देवता रूपी राजाओं की गाथाएं सुनाई जाती हैं, जो धर्म और नैतिकता के प्रतीक माने जाते हैं।
कामधेनु की कथा और थार
एक अन्य रोचक पौराणिक मान्यता के अनुसार, थार क्षेत्र कामधेनु गाय की भूमि मानी जाती है। लोकमान्यता है कि भगवान विष्णु ने इस क्षेत्र को तपस्या और यज्ञ के लिए आदर्श माना था, और कामधेनु जैसी पवित्र गायें इस क्षेत्र में विचरण करती थीं। थार के कुछ हिस्सों में आज भी गायों और ऊंटों की विशेष पूजा होती है, जिसे धार्मिक आस्था से जोड़ा जाता है।
थार और सरस्वती नदी का रहस्य
थार का सबसे बड़ा पौराणिक रहस्य है – सरस्वती नदी। वैज्ञानिक और पुरातत्वविद मानते हैं कि थार में प्राचीनकाल में सरस्वती नदी बहती थी, जिसे वेदों में ज्ञान और संस्कृति की देवी का रूप माना गया है। मान्यता है कि इस नदी के किनारे वैदिक सभ्यता फली-फूली। आज भी थार में ऐसे कई सूखे नदी मार्ग मिले हैं, जिन्हें 'घग्गर-हकरा' के नाम से जाना जाता है और ये सरस्वती की प्राचीन धारा के प्रमाण माने जाते हैं।
रेगिस्तान के बीच बसे मंदिर और तीर्थ
थार की रेत के बीच कई ऐसे मंदिर हैं जो इसकी पौराणिकता को और मजबूत करते हैं। तनोट माता का मंदिर, जो भारत-पाक युद्ध में भी भारतीय सैनिकों का रक्षा कवच बना, उसका उल्लेख भी देवी शक्ति की पौराणिक कथाओं से जुड़ा है। इस मंदिर से जुड़ी लोककथाएं इसे शक्ति की साक्षात उपस्थिति मानती हैं।इसी तरह करणी माता मंदिर (बीकानेर), रामदेवरा मंदिर (रामदेव बाबा की तपोभूमि), और अन्य छोटे-बड़े मंदिर इस बात का प्रमाण हैं कि यह भूमि केवल रेत नहीं, बल्कि धर्म की धरोहर भी है।