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ट्रम्प के जिद में डूब रहा अमेरिका, हुआ इतिहास का सबसे लंबा शटडाउन, फुटेज में जानें अर्थव्यवस्था को ₹1 लाख करोड़ का नुकसान

 

अमेरिका में 1 अक्टूबर से शुरू हुआ सरकारी शटडाउन आज अपने 36वें दिन में प्रवेश कर गया है, जिससे यह देश के इतिहास का सबसे लंबा शटडाउन बन गया है। इससे पहले 2018 में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान 35 दिनों तक सरकारी कामकाज ठप रहा था। इस बार का गतिरोध न केवल प्रशासनिक स्तर पर असर डाल रहा है, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी गहरा झटका दे रहा है।

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कांग्रेसनल बजट ऑफिस (CBO) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, अब तक इस शटडाउन से करीब 11 अरब डॉलर (लगभग ₹1 लाख करोड़) का आर्थिक नुकसान हो चुका है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि यह संकट जल्द नहीं सुलझा, तो देश की जीडीपी (GDP) में चौथी तिमाही के दौरान 1 से 2 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।

शटडाउन के चलते हजारों संघीय कर्मचारी वेतन के बिना काम कर रहे हैं, जबकि कई विभागों में कार्य पूरी तरह ठप पड़ चुका है। नेशनल पार्क्स, ट्रांसपोर्ट, इमिग्रेशन, और प्रशासनिक सेवाएं जैसी महत्वपूर्ण एजेंसियों के कई दफ्तर बंद पड़े हैं। कई कर्मचारियों को मजबूरी में अस्थायी नौकरियों की तलाश करनी पड़ रही है या फिर वे अपने बचत से गुजारा कर रहे हैं।

शटडाउन की मुख्य वजह राष्ट्रपति और कांग्रेस के बीच बजट को लेकर मतभेद मानी जा रही है। व्हाइट हाउस और विपक्षी दलों के बीच सरकारी फंडिंग के वितरण पर सहमति नहीं बन पाई है। बजट में कुछ नीतिगत मुद्दों, जैसे इमिग्रेशन सुधार, रक्षा खर्च और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को लेकर गहरा टकराव है।

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह स्थिति और लंबी चली तो न केवल सरकारी सेवाएं, बल्कि निजी क्षेत्र भी प्रभावित होगा। कई ठेकेदार कंपनियों और आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान नहीं मिल रहा, जिससे उद्योग जगत में भी असंतोष बढ़ रहा है।

अमेरिका में पिछला सबसे बड़ा शटडाउन दिसंबर 2018 से जनवरी 2019 के बीच हुआ था, जो 35 दिनों तक चला। उस दौरान भी अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ा था, लेकिन मौजूदा गतिरोध उससे भी आगे निकल चुका है। वित्त विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय तक चलने वाला यह शटडाउन रोज़गार, उपभोक्ता खर्च और बाजार के विश्वास पर भी नकारात्मक असर डाल सकता है। शेयर बाजार में हल्की गिरावट देखने को मिल रही है, जबकि डॉलर की मजबूती पर भी सवाल उठने लगे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह संकट अमेरिकी जनता में सरकार की विश्वसनीयता को कमजोर कर रहा है। आम लोगों में यह भावना बढ़ रही है कि राजनीतिक टकराव का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है।