वीडियो में देंखे राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, सामान्य B.Ed और स्पेशल एजुकेशन में PG डिप्लोमा रखने वाले उम्मीदवार अब बीएड स्पेशल एजुकेशन के समकक्ष
राजस्थान हाईकोर्ट ने विशेष शिक्षा शिक्षकों को बड़ी राहत देते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि सामान्य बीएड (B.Ed) डिग्री के साथ विशेष शिक्षा में दो वर्ष का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा (PG Diploma) रखने वाले उम्मीदवारों को B.Ed स्पेशल एजुकेशन के समकक्ष माना जाएगा।
यह फैसला जस्टिस मुन्नूरी लक्ष्मण की एकलपीठ ने सोमवार को सुनाया। न्यायालय ने यह निर्णय तीन अलग-अलग रिट याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई के बाद दिया, जिनमें राजस्थान के 13 जिलों से कुल 41 याचिकाकर्ताओं ने राज्य सरकार के खिलाफ अपील की थी। इन याचिकाकर्ताओं ने अदालत से आग्रह किया था कि सरकार द्वारा B.Ed स्पेशल एजुकेशन को ही पात्रता मानने का निर्णय अनुचित है, क्योंकि उन्होंने सामान्य बीएड के बाद विशेष शिक्षा में दो साल का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया है, जो राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) द्वारा मान्यता प्राप्त कोर्स है। उनका तर्क था कि यह योग्यता B.Ed स्पेशल एजुकेशन के बराबर है और उन्हें नियुक्ति प्रक्रिया से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद स्पष्ट किया कि यदि उम्मीदवार ने मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय या संस्थान से सामान्य बीएड की डिग्री प्राप्त की है और उसके बाद विशेष शिक्षा में दो वर्ष का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा भी किया है, तो ऐसी योग्यता को B.Ed स्पेशल एजुकेशन के समकक्ष माना जाएगा। अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि राज्य सरकार और संबंधित विभाग ऐसे उम्मीदवारों को भर्ती प्रक्रिया से बाहर नहीं कर सकते। यदि उन्होंने वैध संस्थान से यह डिप्लोमा प्राप्त किया है, तो उन्हें समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता ने दलील दी कि शिक्षा विभाग ने कई बार ऐसे योग्य उम्मीदवारों को विशेष शिक्षक पदों के लिए अयोग्य ठहरा दिया था, जबकि उनके पास आवश्यक शैक्षणिक योग्यता मौजूद थी। यह निर्णय उनके संवैधानिक अधिकारों और समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है। राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि बीएड स्पेशल एजुकेशन और सामान्य बीएड + PG डिप्लोमा में पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण की प्रकृति भिन्न है, इसलिए दोनों को समान नहीं माना जा सकता। हालांकि, अदालत ने सरकारी पक्ष की इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि दोनों कोर्स का उद्देश्य और शैक्षणिक प्रभाव समान है — यानी शिक्षकों को विशेष शिक्षा की क्षमता प्रदान करना।
इस फैसले से उन सैकड़ों अभ्यर्थियों को राहत मिलने की उम्मीद है, जिन्होंने सामान्य बीएड के बाद विशेष शिक्षा में डिप्लोमा किया है और जो अब तक भर्ती प्रक्रिया से बाहर रह जाते थे। शिक्षा जगत में इस निर्णय का स्वागत किया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश न केवल विशेष शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा करेगा, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में योग्य अभ्यर्थियों को समान अवसर भी प्रदान करेगा। राज्य सरकार से अब अपेक्षा की जा रही है कि वह इस आदेश का अनुपालन करते हुए संबंधित भर्ती प्रक्रियाओं में संशोधन करे, ताकि प्रभावित अभ्यर्थियों को जल्द राहत मिल सके।