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राजस्थान हाईकोर्ट ने सड़क हादसों पर सरकार से मांगा जवाब, वीडियो में जानें नियम तोडने वालों पर सख्त कानुन के लिए जनहित याचिका दर्ज

 

राजस्थान में लगातार बढ़ रहे सड़क हादसों और उनमें हो रही मौतों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने गंभीर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका (PIL) दर्ज की है। जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस अनुरूप सिंघी की खंडपीठ ने यह कदम राज्य में सड़क सुरक्षा की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए उठाया है।

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पीठ ने कहा कि पिछले दो हफ्तों में ही राज्यभर में करीब 100 लोगों की जान सड़क दुर्घटनाओं में जा चुकी है, जो स्थिति की भयावहता को दर्शाता है। अदालत ने टिप्पणी की कि यह न केवल मानव जीवन की अपूरणीय क्षति है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन भी है।

कोर्ट ने कहा कि सड़क हादसे अब एक “राष्ट्रीय संकट” का रूप ले चुके हैं और राज्य सरकार को इसके समाधान के लिए तत्काल ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। अदालत ने संबंधित विभागों — परिवहन, लोक निर्माण, गृह, पुलिस और शहरी विकास विभागों — को इस संबंध में अपना प्रारंभिक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

पीठ ने स्पष्ट किया कि सड़क सुरक्षा केवल कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि प्रशासनिक जिम्मेदारी का भी विषय है। न्यायालय ने कहा कि सड़क हादसों के पीछे मुख्य कारणों में ओवरस्पीडिंग, सड़कों की खराब स्थिति, लापरवाह वाहन पार्किंग, और ट्रैफिक नियमों का पालन न होना प्रमुख हैं।

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि हाल ही में जोधपुर जिले के फलोदी इलाके में हुए हादसे ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया, जिसमें 15 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। ऐसे हादसे यह संकेत देते हैं कि राज्य में सड़क सुरक्षा व्यवस्था पर पुनर्विचार करने की सख्त आवश्यकता है।

हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि अगली सुनवाई में सभी संबंधित विभाग यह बताएं कि —

  1. अब तक सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं,

  2. सड़क किनारे खड़े भारी वाहनों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है, और

  3. भविष्य में सड़क सुरक्षा सुधार के लिए क्या ठोस योजना बनाई गई है।

न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह नागरिकों को सुरक्षित आवागमन का वातावरण प्रदान करे। यदि प्रशासनिक लापरवाही से लोगों की जान जा रही है, तो यह शासन के मूल दायित्व के उल्लंघन के समान है।

इस जनहित याचिका की अगली सुनवाई आगामी सप्ताह निर्धारित की गई है। कोर्ट ने संकेत दिया कि यदि विभागों द्वारा संतोषजनक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई, तो वह इस मामले में और कठोर आदेश जारी कर सकता है।