हिमाचल के कांगड़ा का अनोखा अर्धनारीश्वर शिवलिंग, दो हिस्सों में है शिवलिंग जिनमें अपने आप घटती-बढ़ती हैं दूरियां..

भारत मंदिरों का देश है और देश-दुनिया में हिंदू देवी-देवताओं के कई मंदिर हैं जहां चमत्कार देखने को मिलते हैं। देश में भगवान शिव से जुड़े कई अनोखे मंदिर हैं। इनमें से कुछ मंदिरों में भक्तों को समय-समय पर चमत्कार देखने को मिलते हैं। हम आपको भगवान शिव के एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां भगवान शिव का शिवलिंग अर्धनारीश्रर रूप में स्थित है। यह शिवलिंग दो भागों में विभाजित है, जिनके बीच की दूरी स्वतः ही बढ़ती और घटती रहती है।
आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश में कई प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। इनमें कांगड़ा जिले में एक बेहद अनोखा शिवलिंग है। कांगड़ा जिला के इंदौरा उपमंडल मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित शिव मंदिर काठगढ़ का विशेष महत्व है। काठगढ़ महादेव मंदिर की स्थापना ज्योतिष के नियमों के अनुसार की गई है।
कहा जाता है कि यहां मौजूद शिवलिंग के दो हिस्सों के बीच का अंतर ग्रह-नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है। शिवरात्रि पर इस शिवलिंग के दोनों भाग एक हो जाते हैं। यह शिवलिंग काले-भूरे रंग का है। प्राचीन काल से स्वयंभू यह शिवलिंग सात फुट से अधिक ऊंचा, छह फुट तीन इंच परिधि वाला तथा भूरे बलुआ पत्थर से निर्मित है, जो ब्यास और छोंछ खड्ड के संगम के निकट एक टीले पर स्थित है। गर्मियों में यह रूप दो भागों में विभाजित हो जाता है और सर्दियों में यह पुनः एक रूप धारण कर लेता है।
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच कुलीनता को लेकर युद्ध हुआ था। भगवान शिव यह युद्ध देख रहे थे। दोनों के बीच युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव महाअग्नि जैसे स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। महान अग्नि के समान चमकने वाले इस स्तंभ को काठगढ़ स्थित महादेव का विराजमान शिवलिंग माना जाता है। इसे अर्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है।