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भारत में यहां गिरी थी मां सती की जीभ, बना ज्वाला देवी मंदिर, प्रमुख शक्तिपीठों में से एक, वीडियो में देखें इसकी आलोकिक कथा

नवरात्रि मां दुर्गा की आराधना का विशेष पर्व है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के शुभ दिनों में मां के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है जो अपने भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जो लोग....
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नवरात्रि मां दुर्गा की आराधना का विशेष पर्व है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के शुभ दिनों में मां के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है जो अपने भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जो लोग नवरात्रि का व्रत रखते हैं उन्हें मां दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है और उनकी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। माता रानी उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।


दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जानबूझकर अपने कुल के भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। इस पर भगवान शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती ने अपने पिता द्वारा न बुलाए जाने पर अपमानित महसूस किया और सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। भगवान शंकर ने यज्ञ कुण्ड से सती के पार्थिव शरीर को अपने कंधे पर उठा लिया और दिव्य नृत्य करने लगे। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया और माता सती पर प्रहार किया। हिंदू धर्म के पुराणों के अनुसार कहा जाता है कि जहां-जहां माता सती के शरीर के अंग, वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गया। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं और उपासकों द्वारा पूजनीय हैं।

Shardiya Navratri 2021: मां सती की जीभ से बना शक्तिपीठों में से एक 'ज्वाला  देवी मंदिर', जानें इसका रहस्य - shardiya navratri 2021 jwala devi temple  one of the shaktipeeths made of
शक्तिपीठ वह स्थान है जहां माता सती के अंग गिरे थे। शास्त्रों के अनुसार ज्वाला देवी मंदिर में माता सती की जिह्वा (जीभ) गिरी थी। यही कारण है कि यह मंदिर प्रमुख 9 शक्तिपीठों में शामिल है। हिमाचल प्रदेश राज्य की कांगड़ा घाटी से 30 कि.मी. ज्वाला देवी मंदिर दक्षिण में स्थित है। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती, बल्कि मंदिर के गर्भगृह से निकलने वाली ज्वाला को माता का रूप मानकर पूजा की जाती है। यहां पृथ्वी के गर्भ से नौ ज्वालाएं निकल रही हैं। ज्वाला देवी मंदिर को जोतावाली मंदिर और नगरकोट मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ज्वाला देवी मंदिर की खोज का श्रेय पांडवों को दिया जाता है। इस मंदिर में नवरात्रि के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

शक्ति पीठ जावाल माँ, जहाँ हिमाचल प्रदेश में सती की जीभ गिरी थी। - देवी  विद्या
ज्वालादेवी मंदिर में सदियों से बिना तेल बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जलती आ रही हैं। इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में मां के दर्शन ज्योति स्वरूप में होते हैं। नौ ज्वालाओं में से मुख्य ज्वाला, चांदी के दीपकों के बीच स्थित माता को महाकाली कहा जाता है।

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