ऐसा इकलौता शिवमंदिर जिसमें लगी मूर्ति दिन मे तीन बार बदलती है रंग
हमारे देश में लाखों शिव मंदिर हैं। इनमें से कई शिव मंदिर बेहद रहस्यमय और चमत्कारी हैं। लोग उनके चमत्कार देखकर हैरान रह जाते हैं. ऐसा ही एक चमत्कारी शिव मंदिर है। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती प्रतिदिन तीनों लोकों का भ्रमण कर यहां आते हैं और यहीं विश्राम करते हैं और चौसर भी खेलते हैं। यह मंदिर खंडवा का ओंकारेश्वर मंदिर है। भगवान शिव का यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में चौथा ज्योतिर्लिंग है। ओंकारेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के पास स्थित है। नर्मदा नदी के मध्य ओंकार पर्वत पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर हिंदू आस्था का केंद्र है।
भगवान शिव का यह चमत्कारी मंदिर मध्य प्रदेश के निमाड़ में है। यह खंडवा जिले में नर्मदा नदी के मध्य ओंकार पर्वत पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि ॐ शब्द की उत्पत्ति यहीं भगवान ब्रह्मा के श्रीमुख से हुई थी। इसीलिए हर धार्मिक ग्रंथ या वेद का पाठ ॐ शब्द के साथ किया जाता है। ओंकारेश्वर की महिमा का वर्णन स्कंद पुराण, शिवपुराण और वायुपुराण आदि पुराणों में भी मिलता है। साथ ही यहां पर शिवलिंग का आकार ॐ के आकार का है। इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग को ओंकारेश्वर के नाम से जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहां भगवान भोलेनाथ तीन लोकों का भ्रमण करते हैं और रात्रि में यहीं विश्राम करने आते हैं। यहां माता पार्वती भी विराजित हैं। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती शयन से पहले यहां चौसर खेलते हैं। इसी के चलते यहां शयन आरती भी की जाती है। शयन आरती के बाद प्रतिदिन ज्योतिर्लिंग के सामने चौसर-पासे की बिसात सजाई जाती है।
इस मंदिर में रात में शयन आरती के बाद कोई भी गर्भगृह में नहीं जाता है। हर रात शयन आरती के बाद भगवान शिव के सामने चौसर और पासे रखे जाते हैं। सुबह जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं तो पासे उल्टे मिलते हैं। ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान शिव की गुप्त आरती की जाती है जहां पुजारियों के अलावा कोई भी गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर सकता है। पुजारी भगवान शिव की विशेष पूजा और अभिषेक करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि हिंदुओं में सभी तीर्थों के दर्शन के बाद ओंकारेश्वर के दर्शन और पूजा का विशेष महत्व है। शिवभक्त सभी तीर्थों से जल लाकर ओंकारेश्वर में चढ़ाते हैं तो सभी तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं। ओंकारेश्वर और अमलेश्वर दोनों ही शिवलिंग ज्योतिर्लिंग माने जाते हैं। मान्यता है कि पर्वतराज विंध्य ने यहां घोर तपस्या की थी। तपस्या के बाद उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की और उन्हें विंध्य क्षेत्र में बसने के लिए कहा, जिसके बाद भगवान शिव ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया। वहां एक ही ओंकार लिंग दो रूपों में विभक्त है। इसी प्रकार पार्थिव मूर्ति में प्रतिष्ठित ज्योति को परमेश्वर या अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।