आखिर क्यों भगवान हनुमान जी के इस मंदिर में प्रसाद नहीं लंगोट चढ़ाने से पूरी होती है मनोकामना? द्वापर युग से है सीधा कनेक्शन
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते? कोई लड्डू चढ़ाता है तो कोई कपड़े और आभूषण दान करता है, लेकिन जौनपुर में एक ऐसा मंदिर है जहां लोग मनोकामना पूरी होने पर बाबा को लंगोट चढ़ाते हैं। लोग उन्हें लंगोट वाले बाबा कहते हैं.लंगोट वाले बाबा का यह मंदिर जिला मुख्यालय से 32 किमी दूर केराकत तहसील के औरा कुसैला गांव के पास स्थित है। जब आप जौनपुर-गाजीपुर सड़क पुल पर पहुंचेंगे तो आपको दोनों तरफ पेड़ों पर लाल-लाल लंगोट लटके दिखेंगे। एक बाबा हुआ करते थे जिनका नाम टाई वीर था। उन्हीं के नाम पर इस पुलिया का नाम टाई वीर रखा गया। इसी पुलिया के पास गांव का एक पहलवान प्रतिदिन व्यायाम करता था और टाई बाबा की पूजा करता था।
कहा जाता है कि टाई वीर बाबा और पहलवान बाबा की मृत्यु के बाद गांव के एक युवक को सपना आया था कि इस पुल के पास बाबा का मंदिर बनाकर लंगोट चढ़ाने से उसकी मनोकामना पूरी हो जायेगी. फिर क्या था, उस युवक ने यहां मंदिर बनवा दिया और तभी से बाबा के दरबार में लंगोट चढ़ाने का सिलसिला शुरू हो गया. धीरे-धीरे यह बात प्रचलित हो गई कि जो कोई भी मन्नत लेकर बाबा के दरबार में आस्था से सिर झुकाता है, बाबा उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं। चूंकि बाबा पहलवान थे और पहलवान लंगोट पहनते हैं, इसलिए बाबा को लंगोट चढ़ाया जाता है।
भक्तों की संख्या इतनी बढ़ गई कि हर वर्ष यहां विशाल भंडारा आयोजित किया जाने लगा। यहां आने वाले लोगों का यह भी कहना है कि बाबा में इतनी शक्ति है कि हर किसी की मनोकामना पूरी हो जाती है जिसके बाद लोग लंगोट चढ़ाते हैं। मन्नत पूरी होने पर लंगोट चढ़ाने की बात अजीब जरूर है, लेकिन वहां पहुंचने वाले भक्तों की आस्था इसे सच कर देती है। लोगों की अटूट आस्था ही होती है जो मनोकामना पूरी होने पर बाबा को लंगोट चढ़ाते हैं।
अजब गजब न्यूज डेस्क !!! अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते? कोई लड्डू चढ़ाता है तो कोई कपड़े और आभूषण दान करता है, लेकिन जौनपुर में एक ऐसा मंदिर है जहां लोग मनोकामना पूरी होने पर बाबा को लंगोट चढ़ाते हैं। लोग उन्हें लंगोट वाले बाबा कहते हैं.लंगोट वाले बाबा का यह मंदिर जिला मुख्यालय से 32 किमी दूर केराकत तहसील के औरा कुसैला गांव के पास स्थित है। जब आप जौनपुर-गाजीपुर सड़क पुल पर पहुंचेंगे तो आपको दोनों तरफ पेड़ों पर लाल-लाल लंगोट लटके दिखेंगे। एक बाबा हुआ करते थे जिनका नाम टाई वीर था। उन्हीं के नाम पर इस पुलिया का नाम टाई वीर रखा गया। इसी पुलिया के पास गांव का एक पहलवान प्रतिदिन व्यायाम करता था और टाई बाबा की पूजा करता था।
कहा जाता है कि टाई वीर बाबा और पहलवान बाबा की मृत्यु के बाद गांव के एक युवक को सपना आया था कि इस पुल के पास बाबा का मंदिर बनाकर लंगोट चढ़ाने से उसकी मनोकामना पूरी हो जायेगी. फिर क्या था, उस युवक ने यहां मंदिर बनवा दिया और तभी से बाबा के दरबार में लंगोट चढ़ाने का सिलसिला शुरू हो गया. धीरे-धीरे यह बात प्रचलित हो गई कि जो कोई भी मन्नत लेकर बाबा के दरबार में आस्था से सिर झुकाता है, बाबा उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं। चूंकि बाबा पहलवान थे और पहलवान लंगोट पहनते हैं, इसलिए बाबा को लंगोट चढ़ाया जाता है।
भक्तों की संख्या इतनी बढ़ गई कि हर वर्ष यहां विशाल भंडारा आयोजित किया जाने लगा। यहां आने वाले लोगों का यह भी कहना है कि बाबा में इतनी शक्ति है कि हर किसी की मनोकामना पूरी हो जाती है जिसके बाद लोग लंगोट चढ़ाते हैं। मन्नत पूरी होने पर लंगोट चढ़ाने की बात अजीब जरूर है, लेकिन वहां पहुंचने वाले भक्तों की आस्था इसे सच कर देती है। लोगों की अटूट आस्था ही होती है जो मनोकामना पूरी होने पर बाबा को लंगोट चढ़ाते हैं।