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माता के इस मंदिर में 200 सालों से बिना तेल और बाती के जल रही हैं ज्वालाएं, वीडियो में सामने आई चौकाने वाली सच्चाई 

भारत में अनेक शक्ति धाम और माता मंदिर हैं। इनमें से कई रहस्यमय और चमत्कारी हैं। यहां लोगों को कई चमत्कार देखने को मिलते हैं। शक्ति स्वरूपा माता का एक ऐसा चमत्कारी मंदिर हिमाचल प्रदेश में भी स्थित है......
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भारत में अनेक शक्ति धाम और माता मंदिर हैं। इनमें से कई रहस्यमय और चमत्कारी हैं। यहां लोगों को कई चमत्कार देखने को मिलते हैं। शक्ति स्वरूपा माता का एक ऐसा चमत्कारी मंदिर हिमाचल प्रदेश में भी स्थित है। यह पवित्र स्थान ज्वाला देवी के नाम से प्रसिद्ध है। देवी दुर्गा के ज्वाला रूप के इस पवित्र निवास में 9 पवित्र दीपक बिना तेल बाती के सदियों से लगातार जल रहे हैं। माता का यह पवित्र स्थान हिमाचल प्रदेश से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ज्वाला मंदिर को वली माँ मंदिर और नगरकोट के नाम से भी जाना जाता है। माता का यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में शामिल है।

9 लौ की पूजा होती है, मूर्ति की नहीं

हैरानी की बात यह है कि मां ज्वालामुखी के इस मंदिर में मां की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है, बल्कि धरती के गर्भ से निकलने वाली मां की नौ ज्वालाओं की पूजा की जाती है। खास बात यह है कि इस मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं जलती हैं, जो माता के नौ स्वरूपों की प्रतीक हैं। ये ज्वालाएं सदियों से निरंतर जलती आ रही हैं। कई भूवैज्ञानिकों और पुरातत्व विभागों ने इसका रहस्य जानने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। कई किलोमीटर तक खुदाई करने के बाद भी उन्हें पता नहीं चला कि आग की लपटें कहां से आ रही हैं.

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नौ ज्वालाएं माता के स्वरूपों का प्रतीक हैं

माता के इस मंदिर में धरती से निकलने वाली नौ ज्वालाओं की पूजा की जाती है। इसे देवी मां के 9 रूपों का प्रतीक माना जाता है। सबसे बड़ी ज्वाला को माता ज्वाला का स्वरूप माना जाता है। वहीं आठ ज्वालाओं को मां अन्नपूर्णा, मां विद्यावासिनी, मां चंडी देवी, मां महालक्ष्मी, मां हिंगलाज, मां सरस्वती, मां अंबिका देवी और मां अंजी देवी का रूप माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। जिसके कारण यहां माता सती मां ज्वाला के रूप में और भगवान शिव उन्मत भैरव के रूप में यहां निवास करते हैं।

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चमत्कार देखकर अकबर भी नतमस्तक हो गया।

एक और प्रचलित कहानी यह है कि जब मुगल सम्राट अकबर ने मां ज्वालामुखी के इस मंदिर के जलने की खबर सुनी, तो वह अपनी सेना के साथ आग बुझाने के लिए आया। उनकी सेना ने आग बुझाने के सभी प्रयास किये लेकिन सफल नहीं हो सके। कहा जाता है कि माता के इस चमत्कार को देखकर अकबर ने माता की मजार पर माथा टेका और सोने का छत्र चढ़ाया, लेकिन माता ने इसे स्वीकार नहीं किया और छत्र गिरकर धातु में बदल गया।

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