कुम्भलगढ़ किले का गुप्त तहखाना जहां से लौटकर कोई नहीं आया, वायरल वीडियो में जानिए किले से जुड़े खौफनाक रहस्य ?

राजस्थान का कुम्भलगढ़ किला न सिर्फ भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है, बल्कि यह रहस्यों और रहस्यात्मक घटनाओं का भी केंद्र रहा है। 15वीं शताब्दी में राणा कुम्भा द्वारा निर्मित यह विशाल किला मेवाड़ राज्य की सुरक्षा का अभेद्य किला माना जाता था। 36 किलोमीटर लंबी इसकी दीवार — जिसे 'भारत की ग्रेट वॉल' कहा जाता है — के भीतर आज भी कई ऐसे रहस्य दफन हैं, जिन्हें जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन्हीं में से एक है — कुम्भलगढ़ का वो गुप्त तहखाना, जिसके बारे में कहा जाता है कि जो भी अंदर गया, वह कभी वापस नहीं लौटा।
गुप्त तहखाने का रहस्य: इतिहास या डर?
कुम्भलगढ़ किले के भीतर कई तहखाने और सुरंगें मौजूद हैं, जिन्हें प्राचीनकाल में युद्धकालीन परिस्थितियों में शरण, आपात निकास और रणनीतिक संचालन के लिए बनाया गया था। लेकिन एक विशेष तहखाना, जो मुख्य दुर्ग के उत्तरी भाग में स्थित है, लंबे समय से रहस्य का विषय बना हुआ है। इस तहखाने के बारे में लोककथाओं में कहा जाता है कि यह इतनी गहराई में है कि अब तक इसकी अंतिम सीमा तक कोई नहीं पहुंच पाया।स्थानीय गाइड और इतिहास प्रेमियों की मानें तो इस तहखाने में एक समय में कई सैनिकों को भेजा गया था, जिन्होंने अंदर जाकर इसका नक्शा खींचने का प्रयास किया, लेकिन न तो वे बाहर आए और न ही उनका कोई सुराग मिला। इसके बाद प्रशासन ने इस तहखाने को बंद कर दिया और अब वहां प्रवेश करना पूरी तरह निषिद्ध है।
सुरंगों का मकसद और आज की स्थिति
कुम्भलगढ़ किला ऐसे समय में बना जब हर युद्ध एक लंबे घेरेबंदी युद्ध की तरह होता था। इसलिए राजा और उनके सैनिकों के लिए कई गुप्त सुरंगें बनवाई गई थीं, ताकि आपातकाल में शत्रु से बचकर बाहर निकल सकें या भोजन-जल की आपूर्ति जारी रखी जा सके। कुछ सुरंगें तो किलोमीटरों लंबी थीं और एक स्थान से दूसरे तक गुप्त मार्ग प्रदान करती थीं।लेकिन सदियों बीतने के बाद इन सुरंगों की देखभाल बंद हो गई और अब इनमें से कई जर्जर, खतरनाक और रहस्यमयी बन चुकी हैं। कुछ सुरंगें इतनी गहरी और अंधेरी हैं कि वहां बिना उपकरण के जाना लगभग असंभव है।
आज भी होती हैं अजीब घटनाएं
इस गुप्त तहखाने को लेकर कई लोग अजीब अनुभवों की बातें करते हैं। एक स्थानीय गार्ड ने बताया कि एक बार जब वह और दो अन्य कर्मचारी सफाई कार्य के दौरान उस क्षेत्र के पास पहुंचे, तो उन्हें भीतर से किसी के सांस लेने जैसी आवाजें सुनाई दीं। जब उन्होंने टॉर्च से देखने की कोशिश की, तो उन्हें ऐसा लगा जैसे कोई छाया उनके सामने से तेजी से गुजरी हो। डर के मारे वे भाग खड़े हुए।ऐसे ही एक घटना में एक विदेशी पर्यटक, जो पुरातत्व का छात्र था, उसने खुद तहखाने के बाहरी हिस्से में कुछ घंटे बिताने का प्रयास किया। उसे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे कोई लगातार उसे देख रहा हो। उसकी धड़कनें तेज हो गईं और वह वहां से बाहर निकल आया। अगले दिन उसने अपनी यात्रा को बीच में छोड़ दिया और लौट गया।
क्या है वैज्ञानिक दृष्टिकोण?
वैज्ञानिक और पुरातत्वविद इन घटनाओं को अंधविश्वास और मनोवैज्ञानिक प्रभाव मानते हैं। उनका कहना है कि ऐसे बंद और अंधेरे स्थानों में ऑक्सीजन की कमी, दमघोंटू वातावरण और भ्रम पैदा करने वाली गूंजें इंसान के मन में डर पैदा कर देती हैं। सुरंगों के भीतर तापमान में बदलाव और ध्वनि की गूंज ऐसी अनुभूति करा सकती हैं जैसे कोई मौजूद हो।लेकिन सवाल तब उठता है जब एक जैसी घटनाएं बार-बार और अलग-अलग लोगों के साथ होती हैं। क्या सभी का भ्रम एक जैसा हो सकता है?
स्थानीय विश्वास और धार्मिक आस्था
स्थानीय ग्रामीण और गाइड मानते हैं कि किले में बलिदान देने वाले सैनिकों, रानियों और भिक्षुओं की आत्माएं आज भी इन तहखानों और सुरंगों में भटकती हैं। कई लोग इसे अधूरी आत्माओं का ठिकाना मानते हैं। किले के पास बसे गांवों में आज भी लोग सूर्यास्त के बाद उस दिशा में जाने से बचते हैं।कुछ साधु-संतों की मान्यता है कि इस तहखाने में तांत्रिक शक्तियों का असर है, जो आम इंसानों को भ्रमित कर देती हैं। उनका मानना है कि ये शक्तियाँ किसी विशेष समय पर जागृत होती हैं, खासकर अमावस्या या ग्रहण के समय।
कुम्भलगढ़ का गुप्त तहखाना आज भी एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है। आधुनिक तकनीक, खोजबीन और वैज्ञानिक प्रयासों के बावजूद यहां की कई सुरंगें और तहखाने अब भी मानवीय पहुंच से बाहर हैं। इतिहास, वीरता और रहस्य का यह अद्भुत संगम न केवल राजस्थान की धरोहर है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाता है कि हर वीरता के पीछे कोई बलिदान और हर दीवार के पीछे कुछ अनकहे रहस्य छिपे होते हैं।यदि आप कभी कुम्भलगढ़ जाएं, तो इस किले की भव्यता को निहारने के साथ उसके रहस्यमयी पहलुओं को भी महसूस करने की कोशिश जरूर करें — शायद आपको कोई ऐसा संकेत मिले जो बाकी लोग अब तक समझ नहीं पाए हैं।