
हमारे देश में हजारों प्राचीन मंदिर हैं, इनमें से कुछ मंदिर रहस्यमय माने जाते हैं। इसके साथ ही यहां कई ऐसे कुंड भी हैं जिनके बारे में रहस्यमयी कहानियां प्रचलित हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही कुंड के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके पानी का स्रोत कोई नहीं जान सका। इतना ही नहीं, इस कुंड का पानी इतना चमत्कारी है कि इसके पानी की तीन बूंद पीने से ही प्यास बुझ जाती है। दरअसल, मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में एक तालाब है जिसका नाम भीमकुंड है। इस तालाब के बारे में कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव अपने वनवास के दौरान यहीं से जा रहे थे। तभी द्रौपदी को प्यास लगी। इसके बाद पांडवों ने आस-पास पानी की तलाश शुरू कर दी। लेकिन जब कहीं भी पानी नहीं मिला।
तब धर्मराज युधिष्ठिर ने नकुल को याद दिलाया कि उनमें इतनी शक्ति है कि वे पाताल की गहराइयों में स्थित जल की खोज कर सकते हैं। इसके बाद नकुल ने तप किया। जिससे उन्हें पता चल गया कि पानी कहां है। लेकिन पानी की समस्या खत्म नहीं हुई। प्राचीन कथा के अनुसार द्रौपदी को प्यास से तड़पता देख भीम ने अपनी गदा से जलस्थल पर प्रहार किया। गदा के प्रहार से जमीन में कई छेद हो गए जिनसे पानी निकलने लगा। जल का स्रोत भूमि की सतह से लगभग तीस फीट नीचे था। तब युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा कि वह अपनी धनुर्विद्या का कौशल दिखाएं और पानी तक पहुंचने के लिए रास्ता बनाएं।
इसके बाद अर्जुन ने अपने बाणों से जल स्रोत तक सीढ़ियाँ बना दीं। इन सीढ़ियों से होकर द्रौपदी जल स्रोत तक पहुंची और पानी पीकर वापस लौटी। यह कुंड भीम की गदा से बना था, इसलिए इसे भीमकुंड के नाम से जाना जाने लगा। दूसरी मान्यता यह है कि भीमकुंड एक सुप्त ज्वालामुखी है। कई भूगर्भशास्त्रियों ने इसकी गहराई मापने की कोशिश की, लेकिन कुंड का तल नहीं मिल सका। ऐसा कहा जाता है कि कुंड की अस्सी फीट गहराई में तेज धारा बहती है।
ये धाराएँ संभवतः इसे समुद्र से जोड़ती हैं। भीमकुण्ड की गहराई भूवैज्ञानिकों के लिए भी रहस्य बनी हुई है। ऐसा माना जाता है कि भीमकुंड में स्नान करने से चर्म रोग भी ठीक हो जाते हैं। कोई कितना भी प्यासा हो, इस तालाब की तीन बूंदें उसकी प्यास बुझा देती हैं। कहा जाता है कि अगर देश पर कोई बड़ा संकट आने वाला होता है तो इस जलाशय का जलस्तर बढ़ने लगता है, जबकि आम दिनों में इसका जलस्तर सामान्य रहता है।