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बिलासपुर:काम की तलाश में घरों से निकले मजदूर, कहा-कोरोना से पहले भूख से मर जाएंगे

लॉकडाउन के बावजूद अब शहर के मजदूर घरों से बाहर निकल कर काम की तलाश कर रहे हैं। वे शनिचरी बाजार और बृहस्पति बाजार पहुंच रहे हैं ताकि कोई काम मिल जाए। उनका साफ तौर पर कहना है कि घर से बाहर निकलना उनकी मजबूरी है क्योंकि उन्हें काम चाहिए। घर में बैठे रहे तो
बिलासपुर:काम की तलाश में घरों से निकले मजदूर, कहा-कोरोना से पहले भूख से मर जाएंगे

लॉकडाउन के बावजूद अब शहर के मजदूर घरों से बाहर निकल कर काम की तलाश कर रहे हैं। वे शनिचरी बाजार और बृहस्पति बाजार पहुंच रहे हैं ताकि कोई काम मिल जाए। उनका साफ तौर पर कहना है कि घर से बाहर निकलना उनकी मजबूरी है क्योंकि उन्हें काम चाहिए। घर में बैठे रहे तो कोरोना से पहले तो वे भूख से मर जाएंगे।सभी के पास राशनकार्ड भी नहीं है। ग्रामीण इलाकों में जरूर मनरेगा की वजह से स्थिति थोड़ी ठीक है लेकिन शहरी क्षेत्र में मजदूर परेशान होने लगे हैं। लॉकडाउन के 24 दिन हो चुके हैं और उनका काम बंद है। दैनिक भास्कर ने शनिचरी बाजार पहुंचे मजदूरों से बात की तो उन्होंने अपनी पीड़ा बताई। चिंगराजपारा में रहने वाले राममोहन ने बताया कि आर्थिक स्थिति रोज बिगड़ रही है। उस पर ज्यादा कीमत पर किराना सामान लेना पड़ रहा है। केवल सब्जी सस्ती है लेकिन उसे खरीदने के लिए भी तो पैसा चाहिए। वे रोज कमाने खाने वाले लोग हैं। काम बंद हो गया है और उन्हें परेशानी हो रही है।
चांटीडीह की सावित्री बाई ने बताया कि वह रोज शनिचरी बाजार आती थी और 200-250 रुपए का काम मिल जाता था लेकिन पिछले 1 महीने से वह घर में बैठी है। उसके पास कोई काम नहीं है। ऐसे में वह बच्चों को क्या खिलाएं। बहतराई निवासी रमाबाई का कहना है कि कोरोना वायरस से पहले उसका परिवार भूख से मर जाएगा। उनके लिए किसी तरह का कोई इंतजाम नहीं किया गया है सरकारी चावल मिलने बस से थोड़ी होगा। बाकी चीज भी तो घर में चाहिए जैसे कि किराना सामान। बृहस्पति बाजार में खड़े सुरेश बंजारे ने बताया कि उसके पास जितने भी पैसे बचत में थे, सब लॉकडाउन में खत्म हो गए। अब उन्हें काम चाहिए। अगर काम नहीं मिलेगा तो उनके बच्चे भूख मरेंगे।प्रदेश के सभी नगरीय निकायों के में नाली, सड़क और गलियों के काम करवाने के लिए 374 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए थे। बिलासपुर नगर निगम में 15 करोड़ के काम होने हैं। इसके पीछे दो कारण हैं। पहला, लाॅकडाउन में भी मजदूरों को मजदूरी मिलती रहे और उनकी हालत न बिगड़े।
गांवों में मनरेगा की वजह से थोड़ी राहत है लेकिन चंद हजार को ही रोजगार मिल रहा है। अधिकांश के पास काम नहीं है। 483 पंचायतों में से केवल 314 में ही मनरेगा का काम चल रहा है। 157781 जॉब कार्ड है जबकि 321650 मजदूर रजिस्टर्ड है लेकिन काम 13 से 14 हजार मजदूर ही रोज कर रहे हैं। शुक्रवार को तो 12169 मजदूरों ने ही काम किया।

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